चूंकि भारतीय विश्वविद्यालयों के विश्वस्तरीय संस्थान बनने की प्रक्रिया में यूजीसी को एक सहजकर्ता के बजाय मोटे तौर पर अवरोध की तरह माना जाता है, इसलिए चुने गए संस्थानों को आयोग से तकरीबन पूर्ण स्वायत्तता दी जानी थी। इन संस्थानों को सरकार से 1000 करोड़ रुपए के अनुदान का प्रावधान किया गया है। सरकार की अपेक्षा है कि अगले दस से पंद्रह साल की अवधि में ये संस्थान दुनिया के शीर्ष 500 संस्थानों के बीच अपनी जगह बना लेंगे और यदि वे इस सूची में पहले से हों, तो अपनी रैंक को सुधार लेंगे।
आइओई को मोटे तौर पर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलीं। हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों ने ग्रीनफील्ड संस्थानों को इस श्रेणी में शामिल किए जाने पर इस आधार पर आपत्ति की कि नियोजन के चरण में अस्तित्वहीन होने के नाते ऐसे संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में दिक्कत आएगी।
सरकार ने आवेदन करने की अंतिम तारीख को 12 दिसंबर 2017 से बढ़ाकर 22 फरवरी 2018 कर दिया लेकिन ऐसा अंतिम तिथि के गुजरने के महीने भर बाद किया गया। इससे अटकलें लगना शुरू हुईं कि शायद कुछ निजी या सार्वजनिक संस्थानों को आवेदन करने के लिए अतिरिक्त समय देकर उनको लाभ पहुंचाया जा रहा है।
सरकार ने चयन के लिए विशेषज्ञों की एक विशेषाधिकार प्राप्त समिति ‘ईईसी’ का गठन किया। इसका अध्यक्ष पूर्व चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी को बनाया गया। ईईसी ने पहले आठ सरकारी और तीन निजी संस्थानों को चुना। फिर संतुलन के लिहाज से सरकारी संस्थानों की संख्या घटाकर तीन कर दी। इनमें भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बंबई और दिल्ली को रखा गया। तीन निजी संस्थानों में एक था जियो इंस्टिट्यूट, जो ग्रीनफील्ड संस्थान की श्रेणी में आता है यानी वह अब तक अस्तित्व में ही नहीं आया है।
जियो का चयन विवादास्पद हो चुका है लेकिन तथ्य यह है कि वह प्रतिष्ठित संस्थान बनने के लिए आवेदन करने के योग्य था। सरकारी अधिकारियों ने अपने स्तर पर स्पष्ट किया है कि जियो को पहले तीन साल के भीतर खुद को स्थापित करने के लिए ‘मंजूरी पत्र’ दिया जाएगा और ‘एमिनेंस’ का दर्जा उसके बाद ही दिया जाएगा।
जियो के चयन पर तीन नजरिये सामने आए हैं। पहला, जियो को चुनने के सरकारी निर्णय की एक सिरे से आलोचना हो रही है। दूसरा, यह माना जा रहा है कि दस से पंद्रह वर्ष के भीतर ग्रीनफील्ड संस्थान विश्व रैंकिंग में अपनी जगह नहीं बना पाएंगे। तीसरा यह कि देश में अगर कोई निजी संस्थान कामयाब हो सकता है तो वह जियो ही है क्योंकि उसके पीछे रिलायंस के पैसे की ताकत है।
सवाल उठता है कि वैश्विक रैंकिंग में दस से पंद्रह साल के भीतर जियो के शामिल होने की संभावनाओं का आकलन कैसे हो? रिपोर्टों के मुताबिक जियो का अनुमान है कि वह दस साल के भीतर विश्व के शीर्ष 100 युवा यानी 50 साल से कम पुराने विश्वविद्यालयों में और 13 वर्ष में दुनिया के शीर्ष 500 संस्थानों में जगह बना लेगा।
दुनिया के 100 युवा संस्थानों की एक सूची टाइम्स हायर एजुकेशन ने 2018 में जारी की है। इसमें शामिल 22 विश्वविद्यालय 20 साल से कम पुराने हैं जिनमें 13 को अभी 10 साल भी पूरे नहीं हुए हैं। अधिकतर संस्थान यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के हैं। केवल तीन संस्थान अन्य देशों दक्षिण कोरिया, यूएई और दक्षिण अफ्रीका के हैं।
सूची के मुताबिक दुनिया के शीर्ष 100 युवा विश्वविद्यालयों में से 20 फीसदी को अभी 20 साल भी नहीं हुए हैं। इस तरह देखें तो जियो की संभावनाएं मजबूत जान पड़ती हैं, हालांकि अभी 20 साल पूरे न करने वाले 22 संस्थानों की पृष्ठभूमि जांचने पर पता चलता है कि इनकी स्थापना काफी पहले हो चुकी थी। फिर सवाल उठता है कि रैंकिंग में इन्हें 20 साल से कम का कैसे दिखाया गया?
टाइम्स हायर एजुकेशन की वेबसाइट पर प्रकाशित सूचना के मुताबिक दुनिया में केवल एक संस्थान है जो स्थापना के 10 वर्ष के भीतर 100 युवा संस्थानों की सूची में जगह बना पाया – दक्षिण कोरिया का उल्सान नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूएनआइएसटी)। यह एक सरकारी संस्थान है जो विज्ञान व प्रौद्योगिकी विषयों पर केंद्रित है। इसके उलट निजी संस्थान जियो की आकांक्षा एक संपूर्ण विश्वविद्यालय बनने की है।
दुनिया के 100 युवा संस्थानों की सूची को देखते हुए सीधा सबक यह है कि ये अपने आप में कोई अनुकरणीय आदर्श नहीं हैं। जब दूसरे कामयाब नहीं हो पाए तो क्या जियो ऐसा कर पाएगा? क्या वह इतिहास बना पाएगा? रिलायंस के पैसे की ताकत का मतलब यह नहीं है कि एक विश्वस्तरीय युवा विश्वविद्यालय बनाना इतना आसान काम है।