चीन को छोड़ कई देश विभिन्न मंचों से भारत को स्थाई सीट देने का समर्थन करते रहे हैं। भारत के रास्ते में चीन सबसे बड़ा रोड़ा है। उसके पास वीटो पावर है, जिसका इस्तेमाल वह भारत की मांग के खिलाफ करता रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत की मांग का समर्थन कर चीन को और भड़का दिया है। इससे पहले बराक ओबामा के दौर में भी अमरीका ने सुरक्षा परिषद में भारतीय दावेदारी का समर्थन किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। पिछले जून के चुनाव में भारत को आठवीं बार अस्थाई सदस्य ही चुना गया। यह सदस्यता 2021-22 के लिए होगी। अगर इतिहास पर गौर करें, तो भारत को अस्थाई सदस्यता देने में भी आनाकानी होती रही है। यह सदस्यता दो साल के लिए होती है। पहली बार भारत को 1950-51 के लिए अस्थाई सदस्यता दी गई थी। बीच-बीच में लम्बे समय तक उसे इस सदस्यता से भी वंचित रखा गया।
कई साल से यह बात दोहराई जा रही है कि संयुक्त राष्ट्र में बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के अनुरूप सुधार की प्रक्रिया चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया कि बदलते वक्त के हिसाब से यह संगठन कब तक बदलेगा? संयुक्त राष्ट्र 24 अक्टूबर को अपने 75 साल पूरे करने जा रहा है। पिछले कई साल से दो स्थाई सदस्यों अमरीका और चीन के बीच चल रहे शीत युद्ध ने इस संगठन का सिरदर्द बढ़ा रखा है। जब तक चीन की चाल और चालाकियां नहीं बदलेंगी, भारत के लिए स्थाई सीट सपना ही रहेगी।