एक बात हम कहना चाहते हैं कि बरसों बरस से भारतीय खिलाड़ी अपने मैदानों में जो प्रदर्शन करती है वह विदेशी धरती पर नहीं कर पाती लेकिन इस बार तो आस्ट्रेलिया के हाथों अपनी धरती पर ही बगैर लड़े चित्त हो गई।
दरअसल चार मैच जीतते ही हम कहने लगते हैं कि हमारी टीम को जीतने की आदत हो गई है, कहीं यही अति आत्मविश्वास तो हमारा दुश्मन नहीं हो जाता। अति सर्वत्र वर्जते। आस्ट्रेलिया की टीम के आने से पहले हमारे क्रिकेट विशेषज्ञ, हमारा मीडिया, हमारे खिलाड़ी बार-बार यही कह रहे थे कि इस बार हम आस्ट्रेलिया को करारी मात देंगे। लेकिन हाय। दिल के अरमां एक के बाद एक गिरते विकेटों के संग धराशायी हो गए।
हमारी एक आदत और है। अपनी संतानों को क्षणिक सी सफलता मिलते ही हम उनका इस तरह गुणगान करने लगते हैं जैसे वे विश्व में अजेय हो। लेकिन, यह भी सत्य है कि आज अजेय कुछ भी नहीं रहा। हम तो क्रिकेट के महान जानकारों से यही कहना चाहते हैं कि अरे समझदारों, थोड़ा सब्र रखो। वक्त और जीत ही आदमी को विराट नहीं बनाता बल्कि करारी हार से उबर कर जीतना आदमी को महान बना देता है।
क्रिकेट वालों को आंकड़ेबाजी का बड़ा शौक है और इसी आंकड़ेबाजी के दम पर वे आस्ट्रेलिया को नौसिखियों की टीम बता रहे थे लेकिन उसने विश्व की नम्बर वन टीम को मैदान में ऐसा धोया है कि बेचारों के सारे रंग बदरंग हो गए।
अब देखना है कि ढाई दिन में ढेर होने वाले ये शेर आगे दहाड़ भी पाते हैं या फिर इनकी टांय-टांय फुस्स हो जाएगी।
व्यंग्य राही की कलम से