घोषणा पत्र, दोनों ही पार्टियों के आ गए। उनमें बेरोजगारी भत्ता और वोटरों को लुभाने की कर्जमाफी जैसी बातें तो खूब हैं लेकिन मुद्दों का कोई जिक्र नहीं है। कांग्रेस ने रिफाइनरी की बात जरूर की है। घोषणा पत्रों के क्रियान्वयन का पुराना इतिहास भी बहुत अच्छा नहीं है।
मोदी के साथ दूसरे छोर पर वसुंधरा राजे और योगी आदित्यनाथ हैं तो कांग्रेस की ओर से यह जिम्मा अशोक गहलोत और सचिन पायलट संभाले हुए हैं। मोदी और गांधी के शुरुआती आक्रमण में राष्ट्रीय मुद्दों की भरमार है। मोदी जाति-धर्म और अन्य भावनात्मक मुद्दों पर खुलकर खेल रहे हैं, तो गांधी का जोर रफाल के जरिए भ्रष्टाचार और किसानों की कर्जमाफी पर है।
राहुल गांधी युवाओं को रोजगार पर भी जोर दे रहे हैं, लेकिन अफसोसजनक बात यह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह राजस्थान में भी दोनों ही नेता राज्य के मुद्दों पर नहीं खेल रहे। क्रिकेट को फुटबाल बना उन मुद्दों को मैदान से बाहर कर रहे हैं। राजस्थान के लिए रिफाइनरी जीवन रेखा की तरह है, लेकिन उस पर अभी तक दोनों ही नहीं बोले हैं। इन बातों पर भी अभी तक दोनों में से कोई नहीं बोला है कि, राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती ज्यादतियों को कैसे रोका जाएगा या फिर नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर कैसे बढ़ाए जाएंगे? स्मार्ट सिटी, नई रेल लाइनें, रेल लाइनों का विद्युतीकरण, नए कारखानों की स्थापना कैसे होगी? या फिर हर साल फैलती नई बीमारी से बचाव के लिए चिकित्सा व्यवस्था कैसे मजबूत होगी?
बिजली, पानी, सड़कों की व्यवस्था कैसे दुरुस्त होगी अथवा फिर भारत सरकार से राजस्थान को अगले पांच वर्षों में क्या मिलेगा? अन्तरराज्यीय बिजली-पानी विवाद कब और कैसे सुलझेंगे? नहीं सुलझे तो राजस्थान के खेतों को ही नहीं, आम आदमी और पशुओं को पीने का पानी कहां से मिलेगा? राजस्थान की चिंता फैलते बांग्लादेशी भी हैं तो हर राजस्थानी कश्मीर और नक्सल हिंसा से भी चिंतित है, क्योंकि फौज और अन्य अद्र्धसैनिक बलों में हमारे जवानों की भरमार है। लगभग हर सप्ताह एक शहीद का शव यहां पहुंचता है। राजस्थान के मतदाताओं को इन मुद्दों पर, बड़े दलों और बड़े नेताओं का ध्यान चाहिए, समाधान चाहिए।
govind.chaturvedi@epatrika.com