विद्यालयी शिक्षा: पारंपरिक विद्यालयी शिक्षा मुख्य रूप से तीन ‘आर’ (रीडिंग, राइटिंग और रिप्रोड्यूसिंग) तक ही सीमित है, जबकि नई शिक्षा नीति में प्रारम्भिक बाल विकास, ड्रॉपआउट रेट कम करना, मूल्यांकन के विभिन्न प्रारूप, व्यावहारिक शिक्षा, लचीले पाठ्यक्रम विकल्प, बहुभाषावाद, आवश्यक शिक्षा व समग्र शिक्षा तथा शिक्षक व शिक्षक शिक्षा की केंद्रीयता स्वागतयोग्य सुधार हैं। ऐसा अनुमान है कि यह नई शिक्षा नीति लगभग दो करोड़ स्कूली बच्चों को मुख्यधारा में वापस लाएगी।
उच्च शिक्षा: पारिस्थितिकी तंत्र के नवाचारों में उच्च गुणवत्ता वाले विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना, बहु-विषयक शिक्षा, स्नातक पाठ्यक्रम का 3 से 4 वर्ष में विस्तार, मल्टीपल प्रवेश और निकास बिंदु, समावेशन, महाविद्यालयी शिक्षकों हेतु शिक्षा/प्रशिक्षण, यूजीसी, एआईसीटीई और एनएएसी का प्रतिस्थापन, एम.फिल. का समापन एवं प्रस्तावित नेशनल रिसर्च फाउंडेशन शामिल हैं। नई शिक्षा नीति अनुसंधान आधारित विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करती है, जिससे शिक्षा और उद्योग का समन्वय स्थापित होगा और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
प्रतिमान विस्थापन: नई शिक्षा नीति स्थापित प्रतिमानों में परिवर्तन करने वाली है। ‘क्या सोचना है’ से ‘कैसे सोचना है’, ‘परीक्षा-उन्मुख शिक्षा’ से ‘रोजगार-उन्मुख शिक्षा’, ‘रटने’ से ‘रचनात्मक सीख’ ‘शिक्षक-केंद्रित शिक्षा’ से ‘छात्र-केंद्रित शिक्षा’, हार्ड स्किल्स, सॉफ्ट स्किल्स, लाइफ स्किल्स, क्रिटिकल थिंकिंग और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स पर ध्यान देकर ‘सैद्धांतिक शिक्षण’ से ‘व्यावहारिक शिक्षण’, ‘परीक्षा’ से ‘सीखने’ और ‘जटिल और विषम मानदंडों’ से ‘सरलीकृत संरचना’ के रूप में प्रतिमानों में परिवर्तन के लिए पहल की गई है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने की अत्यधिक आवश्यकता है। ई-लर्निंग के टूल विकसित करना, पाठ्यक्रम-मैप की गई सामग्री के साथ ई-लर्निंग वीडियो के संयोजन, ऑन-स्क्रीन क्विज, बुनियादी उपकरण, जैसे ग्लास, दूरबीन, माइक्रोस्कोप प्रदान करना, शिक्षकों की अनुपस्थिति कम करने के लिए बायोमीट्रिक उपस्थिति मशीनें लगवाना जरूरी है, तो मुद्रित सामग्री आधारित शिक्षण से अवधारणा आधारित शिक्षण में हस्तांतरण के लिए नीति आयोग के विद्यालयी शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक के द्वारा शिक्षक उपलब्धता और योग्यता आधारित चयन, तैनाती में पारदर्शिता, शिक्षक स्थानांतरण और आयोजना के लिए ऑनलाइन तंत्र का क्रियान्वयन भी जरूरी है।
समावेशी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति आवश्यक है, क्योंकि शिक्षा संघीय ढांचे में एक समवर्ती सूची का विषय है। भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय, केंद्र और राज्यों में विषय-वार समितियों को स्थापित करने के लिए तैयार है, जिसमें थिंक टैंक, एनसीईआरटी, केंद्रीय सलाहकार बोर्ड, राष्ट्रीय बोर्ड, राज्य बोर्ड और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी शामिल हैं, जो दिशानिर्देश और कार्यान्वयन के मानदण्ड तय करेंगी। यह सही मायने में सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास होगा।
प्रणालीगत सुधार, जैसे अनुभवात्मक अधिगम, आलोचनात्मक सोच, व्यापक पाठ्यचर्या की रूपरेखा, बहु-विषयक कार्यक्रम और घटिया संस्थानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई आदि आवश्यक है। शिक्षकों के अच्छे वेतन, अंतरक्रियात्मक कक्षा कक्ष, एकीकृत शिक्षाशास्त्र, योग्यता-आधारित शिक्षा और समावेशी डिजिटल शिक्षा भी महत्वपूर्ण हैं। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए ‘निष्ठा’ शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रभावित करने वाला है।
सामान्यत: हम अवधारणा और आयोजना में बेहतर हैं, लेकिन निष्पादन में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। भारत के विकास, आधुनिकीकरण और संरचनात्मक परिवर्तन के लिए पहुंच, समानता, बुनियादी ढांचे, प्रशासन के स्तर पर जमीनी तौर पर कार्यवाही अपेक्षित है, इसलिए अग्रगामी सोच और सुधारों को लागू करना शिक्षा में बुनियादी सुधार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नीति का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद में शिक्षा खर्च को मौजूदा 3.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत करना है, लेकिन संसाधन की कमी, न्यून कर-जीडीपी अनुपात, अर्थव्यवस्था में विकास की आवश्यकताओं की प्रतिस्पर्धा आदि के कारण इस राशि का जुटाना मुश्किल हो सकता है। नीति की सफलता सरकार की अन्य नीतिगत पहल जैसे कि नई औद्योगिक नीति, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल कार्यक्रम के साथ इसके एकीकरण से भी होगी।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति निश्चित ही सशक्तिकरण, आत्मज्ञान, स्वायत्तता, व्यावसायिक क्षमता और रोजगार पर जोर देने के साथ छात्रों को सशक्त बनाएगी। यह भारत को वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य की उम्मीदों को प्राप्त करने में मदद करेगी एवं वास्तविक रूप में पूरे देश की नीति होगी।