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हर मरीज हो ‘चिरंजीवी’

locationउदयपुरPublished: Jun 01, 2021 12:10:26 pm

Submitted by:

Sandeep Purohit

निगहबान

Health Insurance

Health Insurance

संदीप पुरोहित

जिस देश की बड़ी आबादी मुफलिसी भरा जीवन जी रही हो, उस देश की चिकित्सा व्यवस्था बेतहाशा महंगी है। कोरोना हो या अन्य बीमारियों के उपचार के लिए ज्यादातर निजी अस्पतालों में भर्ती होने का मतलब है कि लाखों का बिल जो कि सामान्य मध्यवर्गीय के बूते के भी बाहर है। हेल्थ कवर के नाम पर जो बीमा की राशि वसूली जा रही है अनुपातिक तौर पर वह भी बहुत ज्यादा है। इसी कारण भारत में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य बीमा कम कराया जाता है।
जिस देश के आम आदमी के पास दो रोटी के खाने का संघर्ष हो उससे आप यह उम्मीद रखते है कि वह अपना हेल्थ इंश्योरेंस ले लेगा तो यह बेमानी है। सरकारों को चाहिए कि वह आम आदमी का बिना किसी कागजी जमेले के उनको हेल्थ कवर दे। इसमें कोई शक नहीं कि राजस्थान सरकार की चिरंजीवी योजना एक बेहतरीन योजना है, लेकिन अधिकांश निजी अस्पताल उसे ठेंगा दिखा रहे है। सरकार ने ब्लैक फंगस जैसी गंभीर बीमारी को भी बीमा में शामिल कर दिया है लेकिन अस्पताल है कि मानते ही नहीं है। आम आदमी सरकारी योजना का कार्ड लिए दर-दर भटक रहा है उसे कोई राहत नहीं मिल रही है। आज इस संकट के समय में राजस्थान के ज्यादातर निजी अस्तपालों में चिरंजीवियों का नहीं मालजीवियों का ही इलाज हो रहा है।
हमारे हेल्थ मैनेजमेंट क्राइसिस का सॉल्यूशन सरकारी अस्पतालों के पास नहीं है, उसका कारण हमारी बेतहाशा जनसख्ंया हैं। सरकारी अस्पतालों की एक सीमा है जो महामारी जैसे गंभीर संकट के समय चरमरा जाते है। इसलिए निजी क्षेत्र के संसाधनों का इस्तेमाल तो करना ही होगा। आवश्यकता इस बात की है कि यह अस्पताल आम आदमी को सरकारी योजना चिरंजीवी का लाभ देते हुए इलाज करें। यह समझ से परे है कि ये निजी अस्पताल सरकारी बीमा पर इलाज करने से कैसा मना कर सकते है, ये खुद सरकारी सुख सुविधाओं से पुष्पित पल्लिवत होकर ही खड़े हुए है। इन अस्पतालों में प्रबंधकों व काम करने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना सरकार की सहायता के ये एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाते।
ज्यादातर अस्पतालों ने रियायती दरों पर जमीन, उपकरणों में छूट जैसी तमाम सुविधाओं का लाभ उठाया है। जो डॉक्टर आज इलाज कर रहे है उनमें से अधिकांश सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही पढकऱ तैयार हुए है। सरकारी मेडिकल कॉलेज की फीस कौडिय़ों में होती है निजी मेडिकल कॉलेजों की तरह करोड़ों में नहीं है। एक साधारण बच्चे के निजी क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस व पीजी करने में चार से पांच करोड़ खर्च हो जाना आम बात है वहीं सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़े हुए डॉक्टर लगभग नाम मात्र की फीस देकर ही डिग्री लेते है, यह न भूले कि उनका खर्चा सरकार ही उठाती है। हम उनकी योग्यता को सलाम करते है पर उन्हें भी यह ध्यान रखना होगा कि उनकी डॉक्टरी आम आदमी के लिए हो। आज इस संकट की घड़ी में वे आम आमदी को चिरंजीवी योजना का लाभ देने से पीछे कैसे हट सकते है।
कोरोना के इलाज के लिए रेमडिसिविर इंजेक्शन व ब्लैक फंगस के लिए लाइफोसोमल एम्फोटेरिसिन बी जैसे महंगे इंजेक्शन आम आदमी के खरीदने के बूते के बाहर है। क्या ये हमारी सरकार व जनप्रतिनिधियों को दिखाई नहीं दे रहा है या शायद उनकी मजबूरी है, कारण कुछ भी हो कीमत तो आम आदमी को चुकानी पड़ रही है।
सरकारें तो आती जाती रहती है, सभी राजनीतिक दल आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति का आंसू पौछने का दम भरते है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। हम कैसे समाज का निर्माण करने जा रहे है? लोक शाही में आम आदमी को ध्यान में रखकर ही नीतियां बनती है, इसी क्रम में चिरंजीवी योजना योजना बनाई है पर आज उस योजना पर सावलिया निशान लग गया है।
सरकार को चाहिए जो भी निजी अस्पताल व चिकित्सक चिरंजीवी योजना के लिए मना कर रहे है उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करें। अगर सरकारी स्तर पर कोई बाधा है तो उसे भी सरकार को तुरंत दूर करना चाहिए। इस महामारी के दौर में आज यह आवश्यक है कि आम आदमी को उसके द्वारा लिए गए सरकारी हेल्थ कवर का लाभ मिलना ही चाहिए और सरकार को उसको दिलाने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
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