सकारात्मक बदलाव लेकर आया
वैश्विक महामारी कोरोना कई मायनों में कई सकारात्मक बदलाव लेकर आई है। जान जोखिम में जरूर है, डर भी लग रहा है लेकिन इस भय से मानवीय दृष्टिकोण में जो बदलाव आए हैं, वह विकास की गति को तेज करने वाले होंगे। ‘नए वरदान’ शीर्षक से गुलाब कोठारी का यह अग्रलेख बताता है कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ का नया सिस्टम 30 प्रतिशत कर्मचारियों पर लागू करना चाहिए। कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने यह कदम उठा भी लिए हैं। तमाम सरकारी दफ्तर भी अभी उसी अंदाज में बिना किसी विघ्न के संचालित हो रहे हैं। इस नए सिस्टम से कंपनियों और सरकारी कार्यालयों का अतिरिक्त खर्च बचेगा। यह बचत आर्थिक मंदी से उभारने में संबल प्रदान करेगी।
– डॉ. आरएस देवड़ा, प्राचार्य पीजी कालेज, खरगोन
जंग अभी बाकी
कोरोना ने दुनिया के स्वरूप को बदल दिया है। महाशक्तियों का ह्रास हो रहा है और भारत नई ताकत के रूप में उभरता नजऱ आ रहा है। कोठारी ने ये बात लेख में रेखांकित की है। लेकिन जंग अभी बाकी है। आने वाले 6 माह निर्णायक हैं।
– आजाद सिंह डबास, सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी, भोपाल
फील्ड वर्क वाले कर्मचारियों की भी सोचें
कोठारी ने कोरोना संक्रमण से दुनिया में आए बदलाव और इन परिस्थितियों में भविष्य में अपनाई जाने वाली कार्यशैली को अपने लेख में इंगित किया है। वर्क फ्रॉम होम एक नई संकल्पना है। लाभदायक भी है। लेकिन आज भी 80 फीसदी लोगों का रोजगार फील्ड वर्क पर आधारित है। केबिन या डेस्क वर्क तो भविष्य में घर से हो सकता है, लेकिन फील्ड वर्क के लिए हमें ऐसी जीवनशैली अपनाना होगी, जो संक्रमण से सुरक्षित हो।
– लोकेन्द्र पाराशर, प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा, भोपाल
रोजगार जाने का भय भी है
यह सही है कि समय और परिस्थितियों के साथ चीजें बदलती हैं। कोरोना संक्रमण के चलते कार्य संस्कृति में बदलाव आया है। कोठारी ने सही लिखा है कि अब वर्क फ्रॉम होम की बात होने लगी है। सरकारी और निजी सेक्टरों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है। लेकिन इस संस्कृति से लोगों में यह भय भी बैठने लगा है कि कहीं उनको बाहर का रास्ता न दिखा दिया जाए। मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग ने तो 50 साल से अधिक उम्र के लोगों से काम न कराए जाने का फरमान ठेकेदारों को जारी कर दिया। सरकारों को यह भरोसा दिलाना होगा कि लोगों के रोजगार सुरक्षित रहेंगे। रोजगार जाने का भय दूर नहीं हुआ तो इसका सीधा असर काम पर पड़ेगा। सरकारों के साथ निजी सेक्टर को भी इसका ध्यान देना चाहिए।
– दुर्गेश शर्मा, प्रवक्ता, मध्यप्रदेश कांग्रेस, भोपाल
बड़ा वरदान
विश्व महामारी बन चुके कोरोना वायरस के बीच वर्क फ्रॉम होम की जो कार्य संस्कृति आई है, उससे काफी फायदे होने की उम्मीद है। कोठारी ने इस संस्कृति से प्रकृति को होने वाले फायदे का जो बिंदु लिखा है, वह निश्चित रूप से ऊर्जा देता है। आर्थिक वजन कम होने के साथ-साथ कार्य की स्वतंत्रता मिलना वरदान से कम नहीं।
– उमेश शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा, इंदौर
कार्यक्षमता बढ़ेगी, तनाव घटेगा
कोरोना वायरस के संक्रमण ने संकट के साथ हमें नए अवसर दिए हैं। लेख सराहनीय है कि इस दौर में कार्य सस्कृति बदल रही है। लोग घर से कार्य करेंगे तो कार्यक्षमता में वृद्धि एवं तनाव कम होगा। ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण कम होने से प्रकृति सुरक्षित होगी। प्रकृति बेहतर होगी तो जलवायु संतुलित रहेगी। महत्वपूर्ण है कि कोराना संकट दूर होने के बाद भी शासकीय एवं निजी क्षेत्र के एक तिहाई कर्मचारियों को घर से कार्य करने की सुविधा दी जाए।
– डॉ. आर एस शर्मा, पूर्व कुलपति, मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, जबलपुर
विकास के कई नए आयाम खुलेंगे
निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण काल में ऑफिस वर्क के तौर-तरीकों में बदलाव आया है। जिसके लिए हम सोच भी नहीं रहे थे, वह अचानक से करने लगे। यह सुखद है और प्रोत्साहित करने वाला है। वर्क होम मल्टीनेशनल कंपनियों और विदेशों में तो कार्य प्रणाली का एक हिस्सा था ही अब हमारे यहां भी इसे सहज स्वीकार रहे हैं। इससे विकास के कई नए आयाम खुलेंगे और प्रकृति को लाभ होगा। पारिवारिक रिश्ते भी गहरे हुए हैं। सेवा और संस्कारों का एक नया दौर शुरू हुआ है।
– गजेंद्र सिंह परमार, संचालक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक बैंक, मुरैना
खुद को भविष्य के लिए ढालना होगा
कोरोना वायरस ने हमें कई मामलों में सीख दी है। वर्तमान में जो हालात चल रहे हैं, हमें उसी के हिसाब से खुद को भविष्य के लिए ढालना होगा। हमें तकनीक के उपयोग के इस्तेमाल को ज्यादा अमल में लाना होगा। वातावरण की शुद्धता का ध्यान रखना होगा।
– डॉ. शैलेंद्र मझवार, सहायक प्राध्यापक, मेडिसिन विभाग मेडिकल कॉलेज, दतिया
उम्मीदों की किरणों का प्रस्फुटन
लॉकडाउन ने दुनिया को बदल दिया है। इससे जो आशंकाएं जन्मी हैं, उसके साथ ही उम्मीदों की किरणें प्रस्फुटित हुई हैं। परिवार में अपनत्व आया है और एक-दूसरे की मदद का जज्बा भी जागा है। यह हमारी भारतीय संस्कृति को भी गोचर करता है। निश्चय ही कोरोना महामारी ने अपनी भूली हुई संगठित परिवार की भावना को फिर मजबूत किया है। गुलाब कोठारी का लेख प्रेरणास्रोत है। हर व्यक्ति को इस लेख को पढऩे की जरूरत है। मेरी कामना है कि जो भावनाएं इस लेख के माध्यम से प्रकट हुई हैं, वह जनमानस के अंतरात्मा में उतरें।
– अवधेशानंदपुरी महाराज, उज्जैन
प्रकृति ने स्वयं संतुलन बना लिया
पिछले 10 वर्षों में जिंदगी ने कुछ ज्यादा ही रफ्तार पकड़ ली थी। आवश्यक व अनावश्यक पैरों के लट्टू ने घूमना और फुदकना अनियंत्रित कर दिया था। परिवार से अधिक यार प्यारे होने लगे थे। मां की रसोई फीकी और होटल अपना सा लगने लगा था। धन आवश्यक्ता से अधिक ऐश्वर्य की पूर्ति में लगा था। आज प्रकृति ने अपना संतुलन स्वयं स्थापित कर लिया है। इस महामारी ने कामकाज के तरीकों व फिजूलखर्ची पर रोक लगाने की सीख दी है। – अरिहंत पोरवाल, पूर्व सचिव, संभागीय उद्योग संघ, रतलाम
जिंदगी को नए सिरे से समझने का तरीका सिखाया
कोरोना ने जिंदगी को नए सिरे से सोचने, समझने और जीने का तरीका सिखाया है। अभावों में अपने परिवार के साथ भौतिक सुखों के आदी हो चुके हम किस तरह मुस्कुराकर जी सकते हैं, यह महसूस किया है। ये बिल्कुल सही है कि बदलाव आएंगे, काम के तरीके बदलेंगे और इसे मजबूरी नहीं, समय के साथ परिवर्तन के रूप में स्वीकारना होगा तो आसानी से हम नई कार्य शैली में ढल सकेंगे।
-पंढरी नाथ मिश्र, सेवानिवृत्त प्राध्यापक समाजशास्त्र, छिंदवाड़ा
अच्छाई देखने का सार्थक संदेश
प्रत्येक बुराई के भीतर कहीं न कहीं कोई अच्छाई भी छिपी रहती है। ज़रूरत है दृष्टिकोण के सकारात्मक होने की। कोरोना आपदा से उत्पन्न विषम परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने के लिए यही सकारात्मकता हमें नई ऊर्जा दे सकती है। लेख में इसी सकारात्मकता को बिन्दुवार व्याख्यायित करते हुए कोरोनाकाल और लॉकडाउन में धैर्यवान बने रहने का सार्थक संदेश दिया गया है।
– डॉ.वर्षा सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर
कोरोना के बाद शिक्षा को लेकर स्वरूप काफी बदल जाएगा। यह बिल्कुल सही है कि शिक्षा ऑनलाइन होगी तो यह आने वाली पीढी के लिए बेहतर साबित होगी। वर्क फ्रॉम होम का कल्चर शुरू होने से देश एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा।-अरविंद सिंह, शिक्षक, बाड़मेर
-रामनारायण, व्यवसायी, बाड़मेर
-पंकज कुमार, बैंक कर्मचारी जवाहर नगर सेक्टर नंबर 6, श्रीगंगानगर
– नरेश गर्ग,व्यापारी,श्रीगंगानगर
-मांगीलाल शर्मा, समाजसेवी, बीकानेर
– आदर्श शर्मा, पार्षद, बीकानेर।
आलेख नए वरदान वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सटीक है! सही अर्थों में कोरोना से उत्पन्न स्थितियों में परिवार को एकजुट होने का अवसर मिला है! भागम-भाग भरी जिंदगी में कुछ ठहराव आया है!
– विजय बलाडिया, व्यवसायी, हनुमानगढ़ जंक्शन
कोरोना की इस आपदा ने उद्यम की कमर अवश्य तोड़ी है लेकिन यह सोचने का भी मौका दिया है कि किस प्रकार व्यवसाय को रीडिजाइन किया जा सकता है। हालांकि कारखानों में कर्मचारियों के न होने से इसपर विपरीत असर पड़ रहा है। लेकिन यह भी फायदा हुआ कि परिवार के साथ समय न बिताने की शिकायत दूर हो गई है।
– आशीष माहेश्वरी, युवा उद्यमी, जोधपुर
– शिवम कल्ला, संगीतज्ञ, जोधपुर
-सत्य नारायण कछोट, शिक्षाविद, अजमेर
-डॉ. एस. के. शाह, सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा, अजमेर
-डॉ. अनन्त गुप्ता, सेवानिवृत्त चिकित्सक अजमेर
-जीएल स्वर्णकार, कानून विद, अजमेर