एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मलाईदार रूट बड़ी हैसियत वालों के हवाले है। ऐसे में रोडवेज का घाटा बढऩा स्वाभाविक है। छोटी-छोटी ट्रेवल एजेंसियां, रोडवेज टिकट के कम दाम लेकर भी मुनाफे में है। उनके मुनाफे व रोडवेज के घाटे का रहस्य सब जानते हैं, लेकिन क्या सिर्फ रोडवेज के चक्के मुनाफे के लिए दौड़ेंगे? क्या मुनाफा कमाने के लिए ही रोडवेज की स्थापना की गई थी। मुनाफा एक महत्वपूर्ण पक्ष हो सकता है, लेकिन रोडवेज का ध्येय नहीं हो सकता। अगर रोडवेज मुनाफे में नहीं है तो इसके जिम्मेदार भी खुद ही है।
सदन में विधायक स्वयं कह रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण बस सेवा आखिर कब शुरू होगी? क्या गांवों में रहने वाले बांशिदों को बेहतर परिवहन सुविधा का अधिकार नहीं है? क्या इसे मुनाफे के तराजू में तोलकर देखना उचित है। सबको सार्वजनिक परिवहन सुविधा मिले यह सरकार का उत्तरदायित्व है और जनता की यह जिम्मेदारी है कि उसका शुल्क चुकाए। सरकार को भी मुनाफे के लिए अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए और जनता को भी टिकट खरीदने से परेहज नहीं करना चाहिए। अगर दोनों ही पक्षों में से एक भी पक्ष ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया तो निश्चय ही यातायात के क्षेत्र में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
हमारे कई पड़ौसी राज्यों में जहां राज्य पथ परिवहन निगम नहीं है, वहां स्थितियां भयावाह हो चुकी है, मध्यप्रदेश का उदाहरण सबके सामने है। घाटे के डर से अगर रोडवेज को बंद कर दिया गया तो निजी बस संचालक जनता से मनमाफिक किराया वसूलेंगे। ऐसे में निजी क्षेत्र की दबंगाई होना स्वभाविक है। कल्पना कीजिए अगर कोरोना काल में सरकारी अस्पताल नहीं होते तो क्या तस्वीर होती? यह सबके सामने है। ठीक उसकी प्रकार रोडवेज बसें नहीं होगी तो बस किराए को लेकर क्या स्थिति होगी, उस पर विचार करना चाहिए।
राज्य पथ परिवहन निगम का बेहतर प्रबंधन कैसे हो यह हम सबको मिलकर तय करना होगा तभी परिणाम भी अच्छे आएंगे। अगर जनता टिकट नहीं खरीदेगी तो जुर्माना बढ़ाने के अलावा क्या विकल्प है? पर यह भी जरूरी है कि रोडवेज के कुप्रबंधन के कारण जो घाटा हो रहा है। उनको चिह्नित कर दूर किया जाना चाहिए। इसमें भ्रष्टाचार सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। बिना टिकट सवारी यात्रा से लेकर रूट की कहानी ने रोडवेज की दुर्गति कर दी है।