पिछले सालों के अनुभवों में यह बात सामने आई है कि लोकसभा से पारित कई महत्वपूर्ण बिल राज्यसभा में अटके रहते हैं। कभी शोर-शराबा तो कभी सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष का संख्याबल इसका कारण होता है। जब भी लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल राज्यसभा में अल्पमत में रहता हो तो परेशानियां और ज्यादा होती दिखाई देती हैं। सवाल ये भी उठते हैं कि क्या लोकतंत्र में सीधे जनता से चुनी गई लोकसभा के फैसलों पर राज्यसभा में इस तरह के अवरोध उचित हैं? मौजूदा एनडीए सरकार द्वारा पारित कई महत्वपूर्ण बिल भी अब तक इसीलिए अटके रहे क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास इन्हें पारित करने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं था। इंग्लैंड में हाउस ऑफ लॉड्र्स केवल 13 माह के लिए किसी बिल को रोक सकता है। आयरलैंड में ऊपरी सदन केवल तीन माह के लिए किसी बिल को रोक सकता है जो नीचे के सदन से पास किया गया हो।
जापान में केवल 60 दिन के लिए ऊपरी सदन, नीचे के सदन के प्रस्ताव को रोक सकता है। हमारे यहां राज्यसभा में कई बिलों को बिना निर्णय के लम्बे समय के लिए रोके रखने से विकास की महत्वपूर्ण योजनाएं राजनीतिक खींचतान की भेंट चढ़ती आई हैं। ऐसे अनावश्यक अवरोधों को हटाने की आवश्यकता है। धारा 109 के अन्तर्गत वित्तीय बिल को 14 दिन में राज्यसभा द्वारा लोकसभा को लौटाना पड़ता है। यदि इस अवधि तक नहीं लौटाया जाता है तो उसे पास हुआ मान लिया जाता है।
राज्यसभा के विचारार्थ भेजे जाने वाले सभी बिलों के लिए भी तीन माह की अधिकतम सीमा तय कर देनी चाहिए। इस अवधि के समाप्त होने पर बिल को स्वत: राज्यसभा की स्वीकृति मान लेना चाहिए। आम चुनावों में जनता किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत देती है तो उसकी सरकार को चुनाव घोषणा-पत्र को क्रियान्वित करने का पूरा मौका मिलना चाहिए।