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ब्याज दरों में कमी

locationजयपुरPublished: Feb 10, 2019 03:32:52 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

यदि बैंकों ने रेपो रेट में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को हासिल होने दिया, तो आम लोगों को पहले की तुलना में सस्ते कर्ज उपलब्ध होंगे।

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रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में पहली बार हुई मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की समीक्षा बैठक में रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कमी करने का निर्णय देश की आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिहाज से बेहतर कदम कहा जाएगा। कारोबारी माहौल में सुधार के लिए रिजर्व बैंक से लगातार यह अपेक्षा की जा रही थी कि वह ब्याज दरों में कटौती का रास्ता दे। हालांकि अर्थव्यवस्था के विरोधाभासी संकेतकों को देखते हुए फूंक-फूंक कर कदम रखने के कारण शीर्ष बैंक पिछली कई समीक्षा बैठकों में इसे टालता रहा था। पूर्ववर्ती गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल में शीर्ष बैंक की ऐसी सावधानियों को सरकार जरूरत से ज्यादा सतर्कता बरतने के रूप में देख रही थी। नए गवर्नर दास ने भी रेपो रेट में बदलाव के संकेत नहीं दिए थे, जबकि समझा गया था उनके आने से शीर्ष बैंक की सोच में बदलाव दिखेगा। इस बार भी बैठक शुरू होने से पहले रेपो रेट में कमी के संकेत नहीं दिख रहे थे, लेकिन समिति ने रेपो रेट को 6.5 से 6.25 करते हुए इसे तुंरत प्रभाव से लागू करने का फैसला किया। एमपीसी ने रिजर्व बैंक के रुख को ‘आशंकित दबाव वाली’ श्रेणी से हटाकर ‘तटस्थ’ की श्रेणी में डालने का भी फैसला किया है। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि छह सदस्यीय एमपीसी ने अर्थव्यवस्था की श्रेणी में बदलाव तो सर्व-सम्मति से किया, लेकिन रेपो रेट में बदलाव 4-2 के बहुमत से क्यों करना पड़ा। रवींद्र ढोलकिया, पामी दुआ, माइकल पात्रा और शशिकांत दास ब्याज दरें घटाने के पक्ष में थे, जबकि चेतन घाटे और विरल आचार्य इसके खिलाफ थे।

गवर्नर दास ने पिछले दिनों ऐसे संकेत जरूर दिए थे कि यदि महंगाई की दर नियंत्रित रहती है, तो ब्याज दरों में बदलाव किए जा सकते हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो खाद्य पदार्थों की महंगाई दर तो कम रही है, लेकिन अन्य प्रमुख क्षेत्रों में महंगाई ऊंचाई पर बनी हुई है, जिनमें गैर-खाद्य व गैर-ईंधन वाले क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा भी अन्य घरेलू और वैश्विक मोर्चों पर मिश्रित संकेतक ही मिल रहे हैं। इन सबके बीच रिजर्व बैंक का रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कमी करने का निर्णय थोड़ा चौंकाने वाला जरूर हो सकता है, लेकिन इतना जरूर है कि कारोबारी माहौल को बेहतर करने के लिहाज से यह अच्छा कदम ही कहा जाएगा। यदि बैंकों ने रेपो रेट में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को हासिल होने दिया, तो आम लोगों को पहले की तुलना में सस्ते कर्ज उपलब्ध होंगे।

रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल सेक्टर के साथ-साथ किसानों को भी इस फैसले के सामने आने वाले परिणामों का बड़ा लाभ मिल सकता है। विनिर्माण क्षेत्र में कारोबारी गतिविधियों के बढऩे से पेशेवर लोगों और श्रमिकों को काम के और ज्यादा अवसर मिलेंगे। आने वाले चुनाव के मद्देनजर भी यह फैसला सरकार को सुकून देने वाला हो सकता है। अपने अंतरिम बजट में सरकार ने रियल एस्टेट को मजबूती देने के संकेत दिए हैं। उम्मीद की जा सकती है कि रिजर्व बैंक की भविष्यवाणी के अनुसार ही जीडीपी 7.4 फीसदी रखने में सरकार सफल होगी और कारोबारी कठिनाइयों से जूझ रही जनता राहत महसूस करेगी।

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