
Reality of Kashmir
कभी-कभी संकेतों में दिया गया वक्तव्य भी सीधी मार कर बैठता है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ। मलिक ने रविवार को ही आतंकियों को नसीहत दी थी कि वे सुरक्षाकर्मियों की हत्या करने के बजाए उन लोगों को निशाना बनाएं, जिन्होंने सालों तक इस राज्य यानी कश्मीर की सम्पदा को लूटा है। जिस मकसद से मलिक ने यह बात कही वह ठीक निशाने पर भी लगी और तत्काल प्रतिक्रिया भी आ गई। यह बात और है कि विवाद बढऩे पर सोमवार को ही सफाई देते हुए मलिक ने कहा कि एक राज्यपाल के तौर पर उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। साथ ही यह भी जोड़ा कि अगर मैं इस पद पर काबिज नहीं होता तो बिल्कुल ऐसा ही कहता और किसी भी अंजाम को भुगतने को तैयार रहता। मलिक ने अपने बयान को गुस्से व हताशा में दिया गया बताया और कहा इसकी वजह लगातार बढ़ता भ्रष्टाचार है।
राज्यपाल के रूप में मलिक की संवैधानिक मर्यादा भी है। लेकिन जब वे यह कहते हैं कि कश्मीर में बहुत सारे राजनेता और आला अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो चिंता होना स्वाभाविक है। राजनीतिक लोगों के लिए टीका-टिप्पणियों के अलग अर्थ हो सकते हैं लेकिन पिछले सालों में कश्मीर में जो हालात बने हैं उसके लिए जिम्मेदार कौन है, इस पर विचार करना ज्यादा जरूरी है। राज्यपाल मलिक ने जो कुछ कहा उसमें एक हद तक सच्चाई भी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले कश्मीर के कुछ राजनेता जब आतंकियों की हिमायत में उतरते हैं तो उनका असली चेहरा भी सामने आ जाता है। एक तरफ ये कश्मीर में शांति की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ वहां निष्पक्ष चुनाव नहीं हो, ऐसे प्रयास करते रहते हैं। पिछले सालों मेंं हमने देखा है कि महज दस फीसदी वोट हासिल करने वाले भी कश्मीर से देश की संसद में पहुंच रहे हैं। जब भी कश्मीर में आतंकियों को कुचलने के प्रया स होते हैं, मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले सामने आ जाते हैं।
भ्रष्टाचार के प्रकरणों में जब राजनेताओं और आला नौकरशाहों का नाम आता है तो लगता है कि मलिक ने कुछ भी गलत नहीं कहा। लेकिन किसी को गोली मारने के लिए कहना भी एक तरह से आतंक को बढ़ावा देना ही है। वैसे खुद मलिक ने भी सफाई दे दी है। भ्रष्टाचारियों व दूसरे अपराधियों को सजा देने का काम इस देश के कानून का है। और, इस कानून के मुताबिक सख्त से सख्त सजा ऐसे लोगों को दी जानी चाहिए। देखा जाए तो जरूरत लंबे समय से दहशतगर्दी की मार झेल रहे कश्मीर, खास तौर से घाटी, की सुलगती आग को शांत करने की है। इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले वहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुने जाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। उम्मीद की जा सकती है कि इस तरह निर्वाचित सरकार कश्मीर में शांति के प्रयासों को गति देगी।
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