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सुधारों से ही होगा उद्धार

Published: Jan 17, 2016 11:41:00 pm

बातों ही बातों में निकल गए पौने दो साल लेकिन अब केंद्र सरकार के लिए
कुछ करके दिखाने का समय है। नए वित्त वर्ष के लिए अगले महीने के अंत में जब
नया बजट पेश किया जाएगा

Opinion news

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बातों ही बातों में निकल गए पौने दो साल लेकिन अब केंद्र सरकार के लिए कुछ करके दिखाने का समय है। नए वित्त वर्ष के लिए अगले महीने के अंत में जब नया बजट पेश किया जाएगा तो उस पर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की छाया होगी। बढ़ते हुए खर्च के मद्देनजर जरूरी है कि सरकार की आमदनी भी बढ़े। लेकिन, सरकार ऐसा करेगी कैसे? सरकार के सामने चुनौती है कि वह वायदे के मुताबिक आर्थिक विकास को गति कैसे दे? रोजगार कैसे सृजित करे? वे विनिर्माण और आधारभूत सुविधाओं के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए क्या योजनाएं लाएंगे? ऐसे ही सवालों पर विशेषज्ञों की राय आज के स्पॉटलाइट में…

जरूरी है पूंजीगत खर्च को बढ़ाना
डॉ. अश्विनी महाजन दिल्ली विवि
बीते साल अपना बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने कहा था कि हालांकि 2015-16 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.9 प्रतिशत रहेगा लेकिन आगे आने वाले सालों में उसे और घटाया जाएगा और 2016-17 में इसे 3.5 प्रतिशत तक लाया जाएगा। गौरतलब है कि देश में महंगाई पर काबू पाने के लिए यह जरूरी माना जाता है कि राजकोषीय घाटे को सीमित रखा जाए। ध्यान रखना होगा कि फिस्कल रेसपॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएम एक्ट) के तहत सरकार को राजकोषीय घाटे को 2.5 प्रतिशत तक लाना था लेकिन दुनिया भर में आई आर्थिक मंदी के मद्देनजर इस लक्ष्य को टाल दिया गया था।

वेतन आयोग का साया
पिछले साल बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने सातवें वेतन आयोग की अपेक्षित सिफारिशों के मद्देनजर बजट में भी प्रावधान किया था। लेकिन, अब आने वाले साल में भी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की छाया बजट पर जरूर दिखाई देगी। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि सरकार के कुल बजट का खासा बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन में ही चला जाता है और जब वेतन और पेंशन (खासतौर पर एक रैंक एक पेंशन के नियम होने के बाद) में कम से कम 20 से 25 प्रतिशत की वृद्धि अपेक्षित है। इस परिस्थिति में यह बात तो जाहिर ही है, सरकारी खर्च भी उसी अनुपात में बढऩे वाला है। खर्च बढ़ाने के लिए जरूरी होता है कि आमदनी भी बढ़े।

यूं तो हर साल सरकार की करों से आमदनी बढ़ती ही है लेकिन इस बार सरकार की चिंता यह है कि आने वाले वर्ष में यह वृद्धि उम्मीद के मुकाबले कम ही रहेगी। इसका कारण यह माना जा रहा है कि भले ही वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ठीक-ठाक वृद्धि की जाए लेकिन मौद्रिक जीडीपी में वृद्धि पहले के मुकाबले कम ही रहने वाली है। यह किसी गलत कारण से नहीं हो रहा। सच्चाई यह है कि थोक मुद्रास्फीति घट कर पिछले 11 महीनों में शून्य प्रतिशत या उससे कम रही है। ऐसे में वस्तु बाजार में ‘डिफ्लेशनÓ यानी मंदी का असर कर आय पर पडऩे वाला है।

हालांकि सरकारी हलकों में अब भी यह भ्रम बना हुआ है कि देश में मुद्रास्फीति है या नहीं है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम् ने पिछले साल यह कहा था कि मुद्रास्फीति नापने का एक तरीका यानी ‘जीडीपी डिफ्लेटर’ है, इसके अनुसार देश में मुद्रास्फीति नहीं है बल्कि डिफ्लेशन यानी मंदी की स्थिति है। अब वित्त मंत्रालय के हवाले से भी इस आशय के संकेत आ रहे हैं कि वस्तु बाजार में मंदी के चलते सरकारी राजस्व प्रभावित हो सकता है।

राजस्व वृद्धि की संभावना
यह सही है कि वस्तु बाजार में मंदी के चलते सरकार का राजस्व खासतौर पर उत्पाद एवं सीमा शुल्क प्रभावित हो सकता है। लेकिन, इसके साथ ही साथ सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों से उत्पाद शुल्क में खासी वृद्धि मिलने की संभावना है। गौरतलब है कि वर्ष 2015-16 में कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत में भारी गिरावट दर्ज हुई और तेल की कीमतें पिछले सालों की तुलना में एक तिहाई रह गईं। इस दौरान तेल की कीमतों में कमी का लाभ जनता को नहीं दिया गया और सरकार ने मौके का लाभ उठाते हुए उत्पाद शुल्क में भारी वृद्धि कर दी। इसका असर यह हुआ कि 2014-15 में जहां पेट्रोलियम उत्पाद शुल्क से केन्द्र सरकार को मात्र 78,545 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए थे, वर्ष 2015-16 में यह बढ़कर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त होने वाले हैं।

जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जहां 2014-15 में केन्द्र सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों के उत्पाद शुल्क से जीडीपी के 0.8 प्रतिशत ही प्राप्त हुए थे, वहीं इसके मुकाबले 2015-16 में यह राशि जीडीपी के 1.4 प्रतिशत तक पहुंचने वाली है। यही नहीं एक महत्पूर्ण बात यह भी है कि राज्य सरकारों को वैट के रूप में पहले से कम प्राप्ति होने वाली है। पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें घटने के कारण अब केन्द्र सरकार और तेल कंपनियों को पहले से कहीं कम सब्सिडी का भार सहना पड़ेगा। एक तरफ राजस्व आय में वृद्धि, दूसरी ओर सब्सिडी बिल में कमी केन्द्र सरकार को राहत देने वाले हैं। अब जरूरत इस बात की है कि राजस्व में इस राहत का लाभ सरकार देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य प्रकार के पूंजीगत खर्च बढ़ाने में लगाए।

10 फीसदी आर्थिक विकास होगा लक्ष्य
पिछले कुछ समय से देश आर्थिक धीमेपन की गिरफ्त में रहा है। जीडीपी विकास में कमी का यदि अंदाज लें तो देखते हैं कि विनिर्माण, आधारभूत सुविधाओं, और कृषि सभी क्षेत्रों में निवेश कम हुआ है। देश में विनिर्माण बढ़ाने के लिए सरकार ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दे रही है लेकिन सरकार विनिर्माण में निवेश को बढ़ावा देने के लिए करों में छूट और खुद विनिर्माण को बढ़ावा नहीं देती तो ग्रोथ में खास वृद्धि की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

सरकार खुद ही सारा आधारभूत सुविधाएं तैयार नहीं कर सकती लेकिन सरकार की भागीदारी के बिना भी यह संभव नहीं है। स्वर्णिम चतुर्भुज हो, एयरपोर्ट हों, जलपोत हों, मेट्रो हो या कोई अन्य आधारभूत सुविधाएं, सरकार की भागीदारी के बिना आगे नहीं बढ़ पाते। ऐसे में बजट 2016-17 पर निगाहें हैं कि किस प्रकार से वित्तमंत्री देश में पूंजीगत खर्च बढ़ाएंगे और अगले वर्ष 10 प्रतिशत विकास लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा।

बजट आकार बढ़े
वित्तमंत्री, देश में आर्थिक विकास को के अपने वायदे के मद्देनजर दबाव में हैं कि कैसे भी हो सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय बढऩा ही चाहिए। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से घरेलू निवेश में कमी आई है जिसका एक बड़ा कारण सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय में कमी है। ऐसे में सरकार को सार्वजनिक निवेश बढ़ाना होगा।

सड़कें, एयरपोर्ट, रेलवे आदि क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है। सरकार विदेशी निवेश समेत निजी निवेश बढ़ाने की कोशिश में है लेकिन सार्वजनिक निवेश बिना यह आगे नहीं बढ़ सकता, ऐसा सरकार भी मानती है। पिछले साल वित्त आयोग की सिफारिशों, खासतौर पर केन्द्रीय करों में राज्यों का हिस्सा बढ़ जाने के कारण 2015-16 का केन्द्र सरकार का बजट उससे पिछले साल की तुलना में कम रह गया था।

गौरतलब है कि पिछले सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। सातवें वित्त आयोग की सिफारिशों और एक रैंक एक पेंशन नियम के लागू होने के बाद केन्द्र सरकार का राजस्व खर्च बढऩे ही वाला है, लेकिन जरूरत यह है कि केन्द्र सरकार अपना पूंजीगत खर्च भी बढ़ाए। इसके लिए कुल बजट आकार में कम से कम 10 से 15 प्रतिशत वृद्धि करनी होगी यानी पिछले साल के बजट आकार 17.8 लाख करोड़ को लगभग 20 लाख करोड़ तक ले जाना होगा।

निर्यात से मिलेगी गति
मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में सबसे अहम जरूरत है कि बजट में आर्थिक सुधारों को धार दी जाए। मोदी सरकार अपने कार्यकाल के पहले डेढ़ साल में सियासी प्रतिबद्धताओं के कारण आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर आगे नहीं बढ़ सकी है। अगर हमें डबल डिजिट ग्रोथ हासिल करनी है तो सरकार को दूसरे पीढ़ी के संरचनात्मक सुधारों (मसलन वित्त क्षेत्र में पूंजी प्रवाह की अड़चनें, घाटे वाले पीएसयू का विनिवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को पुनर्जीवन, सब्सिडी बिल पर सरकारी खर्च में सुधार करके नकदी हस्तांतरण लागू करना और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को निरंतर रखना) को लागू करना होगा और आगामी बजट में इस बाबत स्पष्ट संकेत देना होगा।

दोहरे अंकों की विकास दर के बिना 80 करोड़ की विशाल कामकाजी आबादी के लिए रोजगार पैदा करने के साथ ही महंगाई पर लगाम कसना मुमकिन नहीं है। विकास और नौकरी दो ऐसे पैमाने थे जिन पर देश ने नरेंद्र मोदी के वादों पर विश्वास किया। पहले दो बजटों में पुरानी सरकार की लकीर ही पीटी गई, लिहाजा अब वक्त आ गया है कि सरकार आर्थिक सुधारों वाला ड्रीम बजट पेश करके अपने वादे पूरे करे।

ऊर्जा क्षेत्र में निवेश हो
अर्थव्यवस्था की कई चुनौतियोंं में से तीन क्षेत्रों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। यह तीन क्षेत्र हैं – व्यापार, वित्त और ऊर्जा। आज अमरीका और यूरोप के परिपक्व होते बाजारों में निर्यात की बहुत गुंजाइश नहीं रह गई है। अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लातिनी अमरीकी बाजारों में कारोबार के लिए भारत को चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से जूझना होगा। तेल की कीमतों में गिरावट और सोने की घरेलू मांग में आई नरमी के कारण फिलहाल आयात के मोर्चे पर राहत है लेकिन निर्यात को बजट से बूस्टर की जरूरत है।

यह बात सब जानते हैं कि देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए वित्त की सख्त जरूरत है क्योंकि घरेलू वित्त संसाधन पर्याप्त नहीं है। पूंजी प्रवाह का विनियमन आज भी हम दशकों पुराने अप्रासंगिक कानूनों से कर रहें हैं। बजट में इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग मजबूरी में तब्दील हो चुका है। भविष्य में वही देश टिकाऊ और संपोषणीय आर्थिक विकास कर पाएगा, जिसकी अर्थव्यवस्था स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों के दम पर आगे बढ़ रही होगी। उम्मीद है, बजट में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार कुछ मजबूत और बड़े कदम उठाएगी।

स्टार्ट अप पर निगाहें
स्टार्ट अप कारोबार से जुड़े कारोबारियों की निगाहें बजट पर टिकी हैं। प्रधानमंत्री ने ‘स्टार्ट-अप इंडियाÓ का शुभारंभ किया है। युवा भी तेजी से नए स्टार्ट अप कंपनियां खड़े करते जा रहे हैं। चूंकि स्टार्ट अप कारोबार अभी शैशव काल में ही है इसलिए अगर इस कारोबार की राह में आ रहे गतिरोधों (मसलन वेंचर केपिटल फंड व एंजल इंवेस्टर को पूंजी प्रवाह संबंधित सहूलियतें, सीड केपिटल फंड की स्थापना, शुरूआती साल में कर राहत आदि) को जल्द दूर करना होगा। कुछ रियायतों का ऐलान जरूर किया गया है, लेकिन धरातल पर इसके असर को देखना भी अहम होगा। वर्तमान सरकार ने पूर्व में कई योजनाओं को जोरशोर से शुरू तो किया, लेकिन इनके वांछित परिणाम सामने नहीं आए हैं।

तेल में मंदी से विकास का मौका
जयंतीलाल भंडारी आर्थिक मामलों के जानकार
चीन की सुस्ती और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव की मार से वैश्विक शेयर बाजार लगातार गिरावट का शिकार हो रहे हैं। कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट ने वैश्विक बाजारों पर दबाव और बढ़ा दिया है। लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जीवनदायिनी बन गई है।

एक ओर कच्चे तेल की कीमत में प्रति एक डॉलर गिरावट की बदौलत आयात बिल में 6,500 करोड़ रुपए की कमी आती है। वहीं दूसरी ओर पेट्रोल-डीजल सस्ता होने से महंगाई घटने के अलावा सब्सिडी का बोझ भी 900 करोड़ रुपए कम हो जाता है। हाल ही में विश्व बैंक ने ‘उभरते देशों के बाजारों में मंदी की स्थिति’ विषय पर प्रकाशित रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच वर्षों से उभरते देशों के बाजारों की वृद्धि पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नरमी, धीमे पूंजी प्रवाह, जिंस मूल्यों में नरमी और अन्य बाहरी चुनौतियों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इससे इन देशों के साथ-साथ विकसित देशों में भी मंदी का जोखिम गहरा गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा है कि यद्यपि भारत पर अब तक वैश्विक मंदी का असर नहीं पड़ा है पर भारत को मंदी की आशंका से बचे रहने के लिए अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, निवेश और मांग बढ़ाने जैसे कदम उठाना होंगे।
 
2008 जैसे संकेत
ग्लोबल बैंक – स्टैंडर्ड चार्टर्ड और दिग्गज विदेशी बैंक आरबीएस ने भी 12 जनवरी को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनियाभर में मंदी का संकट गहरा रहा है। आरबीएस के मुताबिक कच्चा तेल 16 डॉलर प्रति बैरल तक आ सकता है। कहा गया है कि बाजार में 2008 के लीमैन संकट से पहले जैसे संकेत दिख रहे हैं। आरबीएस की सलाह है कि अच्छी गुणवत्ता के बॉन्ड्स को छोड़कर सब कुछ बेच दें। फिलहाल रिटर्न की बजाय पूंजी बचाने की चिंता करें।

उल्लेखनीय है कि कच्चे तेल की कीमत जनवरी के दूसरे सप्ताह में 32 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रह गई। यह 12 साल के सबसे निचले स्तर के करीब है। इसमें आगे और गिरावट की आशंका जताई है। 2016 की शुरुआत से कच्चे तेल की कीमतों में करीब 16 फीसदी गिरावट आ चुकी है। चूंकि कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्था की गतिशीलता के लिए जरूरी घटक माना जाता है, इसलिए इसकी कीमतों में लगातार गिरावट से जाहिर होता है कि दुनियाभर में मांग घटती जा रही है। वैश्विक मांग घटना वैश्विक मंदी का शुरुआती लक्षण होता है। इससे वैश्विक बाजारों में घबराहट बढ़ गई है। स्थिति यह है कि वर्तमान दौर में न केवल उभरते हुए देश वरन् अधिकांश विकसित देश भी मांग में कमी, उत्पादन में स्थिरता और बढ़ती बेरोजगारी के बीच विकास दर की चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

मांग बढ़ाई जाए
अधिकांश विकसित देशों में अब वह संस्थागत मजबूती नहीं बची है, जो दो-तीन दशक पहले उनके जीवन स्तर को थामे हुए थी। यदि विकसित देशों की विकास संभावनाएं घटेंगी तो उसका असर भारत पर भी पड़ेगा। निसंदेह देश के आर्थिक परिदृश्य पर मंदी की आशंका को बढ़ाने वाली दो चुनौतियां स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। एक ओर औद्योगिक उत्पादन और निर्यात घट रहे हैं तो दूसरी ओर निवेश और मांग में भी भारी कमी दिखाई दे रही।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अर्थव्यवस्था में उपभोग स्तर बढ़ाने और मांग बढ़ाने के लिए कुछ विशेष उपायों से निकट भविष्य में गति मिल सकती है। कम ब्याज दर का दौर शुरू होना चाहिए, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा। यह भी जरूरी है कि सरकार के द्वारा आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए देशभर में अनिवार्य रूप से न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई जानी चाहिए। ताकि लोगों की जेब में पैसे पहुंच सकें।

इस साल उम्मीद
सरकार को घरेलू मांग के निर्माण के लिए उद्योग-कारोबार को प्रोत्साहन देना होगा। वहीं अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकारी निवेश में वृद्धि करनी होगी। देश में लोगों को रोजगार देकर उनकी क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर सड़क, आवास, बंदरगाह, विद्युत निर्माण आदि क्षेत्रों की कार्यरत योजनाओं को शीघ्र पूरा करने का अभियान शुरू किया करना होगा। हम आशा करें कि सरकार वर्ष 2016 में औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, निवेश और मांग बढ़ाने के लिए उपयुक्त कदम आगे बढ़ाएगी।
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