भूटान और मालदीव वैक्सीन हासिल करने वाले पहले देश हैं। बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, सेशल्स में भी टीकों की आपूर्ति हुई है। श्रीलंका, अफगानिस्तान और मॉरीशस को भी जरूरी नियामक मंजूरी मिलने के बाद वैक्सीन भेजी जाएगी। इस कदम की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया था द्ग भारत विश्व समुदाय की स्वास्थ्य सेवा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक भरोसेमंद सहयोगी बनकर सम्मानित महसूस कर रहा है। कई देशों में कोविड वैक्सीन की आपूर्ति शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में और आपूर्ति की जाएगी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का ट्वीट था द्ग भारत ने मानवता को वैक्सीन देने की प्रतिबद्धता को निभाया है। हमारे पड़ोसियों को वैक्सीन की आपूर्ति 20 जनवरी से शुरू हो गई है। विश्व की फार्मेसी कोविड की चुनौती पर विजय हासिल कर लेगी।
अपनी घरेलू जरूरतों को चरणबद्ध तरीके से पूरा करने के साथ ही भारत अपने साझेदार देशों को भी चरणबद्ध तरीके से वैक्सीन की आपूर्ति करना जारी रखेगा। भारत को सुनिश्चित करना होगा कि विदेशों में वैक्सीन भेजने के साथ ही हमारी राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए घरेलू निर्माताओं के पास पर्याप्त स्टॉक हो। जैसे कि संकेत हैं कि अपनी कूटनीति के तहत भारत विश्वभर के जरूरतमंद देशों को वैक्सीन की आपूर्ति करना जारी रखेगा। निश्चित रूप से विकासशील देशों के लिए वैक्सीन गठबंधन ‘जीएवीआइ’ की कोवैक्स फेसिलिटी के तहत ऐसा करने के लिए घरेलू जरूरतों और अंतरराष्ट्रीय मांग और दायित्वों के साथ सामंजस्य बैठाने की जरूरत होगी। अंतरराष्ट्रीय दायित्व को ध्यान में रखते हुए भारत, ब्राजील को भी २० लाख खुराक भेज चुका है। इतना ही नहीं, किसी भी राष्ट्र को वैक्सीन भेजने से पहले प्रशासनिक और ऑपरेशनल पहलुओं को कवर करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की भी भारत ने पहल की है। पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये के चलते भारत अपने फैसले के बारे में सुनिश्चित नहीं है, और इसकी वजह पाकिस्तान की चीन से अत्यधिक निकटता है। इस्लामाबाद वैश्विक गठबंधन अथवा द्विपक्षीय व्यवस्था के जरिए वैक्सीन हासिल करने के विकल्प तलाश रहा है।
भारत ने नेपाल और चीन समेत कुछ पड़ोसी देशों के कटु स्वभाव से ऊपर उठकर मानवीय दृष्टिकोण को उच्च प्राथमिकता दी है। अपने नक्शे के जरिए कड़वाहट फैलाने वाले नेपाल ने तो अभी हाल ही भारत सरकार से कोविड वैक्सीन की मांग की है। यह मदद अपने आप में मायने रखती है। भारत कोवैक्सीन देगा जो हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कम्पनी द्वारा निर्मित है। विश्लेषकों का कहना है कि भारत के वी-5 शक्ति के रूप में उभरने के कई कारक हैं। चीन के उत्पादों की कम गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए भारत के फार्मास्युटिकल सेक्टर को अधिक विश्वसनीय माना जाता है। इसी वजह से पड़ोसी देशों ने भारत को वरीयता दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन में भारत की सकारात्मक भूमिका और कोवैक्स नवाचार में मजबूती लाने के प्रयास भी महत्त्वपूर्ण हैं, जिसका उद्देश्य सभी देशों में वैक्सीन की तीव्र और न्यायसंगत पहुंच तय करना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कोवैक्सीन के उत्पादन से भारत को फार्मा क्षेत्र से संबंधित उत्पादन और आपूर्ति शृंखला में दुर्लभ अवसर मिला है। भारत का जेनेरिक उत्पादन में वर्चस्व है और अमरीका के ४० प्रतिशत
बाजार को नियंत्रित करता है जो किसी भी राष्ट्र के लिए बड़ी उपलब्धि है। यह भी स्मरण रखना होगा कि प्रधानमंत्री ने इस बारे में पहली बार पहल की थी और महामारी के पहले चरण यानी मार्च 2020 में ही सार्क देशों के लिए वर्चुअल कांफ्रेंस का आयोजन किया था। यह भी एक तथ्य है कि महामारी के दौरान भारत ने अन्य देशों को बड़ी संख्या में पहले ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, रेमडेसिविर और पैरासिटामोल की गोलियों के साथ डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर, मास्क, दस्तानों आदि की आपूर्ति की। भारत ने पड़ोसी देशों को उनकी क्लीनिकल क्षमता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया है। बांग्लादेश के बाद म्यांमार सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट के साथ अनुबंध कर भारत पर जताया है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि भारत की ‘पड़ोस पहले’ की नीति से सुसंगत वैक्सीन डिप्लोमेसी भी भारत के उन पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करेगी, जिन्हें भारत के खिलाफ उकसाने के लिए चीन घृणित तरीके अपनाता रहा है और कूटनीतिक चालें चलता रहा है। वैक्सीन डिप्लोमेसी से विश्व स्तर पर न केवल हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा और नवाचार की विशिष्टता को मान्यता मिली है, बल्कि भारत के मानवतापूर्ण रुख को भी वैश्विक मंचों पर सराहा गया है।