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मिलाप कोठारी : कलम जिन्दा रहेगी

locationजयपुरPublished: Jun 19, 2019 10:10:14 am

पत्रिका समूह के निदेशक मिलाप कोठारी न सिर्फ मूर्धन्य पत्रकार बल्कि गम्भीर चिन्तक भी थे।

shri milap kothari ji

milap kothariji

पत्रिका समूह के निदेशक मिलाप कोठारी न सिर्फ मूर्धन्य पत्रकार बल्कि गम्भीर चिन्तक भी थे। समय-काल और परिस्थितियों का सतत अध्ययन करते हुए भविष्य के गर्भ का अनुमान लगाने का गुण उन्हें अन्य लोगों से अलग बनाता था। यही वजह है कि उन्होंने ढाई दशक से अधिक समय पहले ही आज के हालात का खाका खींच दिया था। आज की चुनौतियों और विषमताओं के प्रति तब ही आगाह कर दिया था। कोठारी किसी एक विषय तक सीमित नहीं रहे बल्कि अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण हर विषय के गूढ़ तक उनकी पैठ थी।

मिलाप मेरे पुत्रवत हैं। कुलिशजी के कनिष्ठ पुत्र तथा गुलाबजी के लघुभ्राता हैं। मेरी पुत्री नेमू उर्फ मंजुला के पति हैं। इस दृष्टि से भी, क्योंकि यह रिश्ता तो बहुत बाद का है। यह भी गुलाबजी के साथ और कई बार अकेले ही मालपुरा से जयपुर आता रहता था। तब भी वह मुझे काका ही कहता था और मेरे बच्चों के साथ ही खेलता था। वह बचपन से ही साहसी, खतरों से खेलने वाला एवं कुशाग्र बुद्धि का विद्यार्थी था।

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हाई स्कूल की मेरिट लिस्ट में इसका दस में से छठा नम्बर था। तब बोर्ड केवल प्रथम दस के नाम ही घोषित करता था। जब इसका रिजल्ट आया उस दिन संयोग से हमारे साथ पत्रिका में उसे प्रकाशित करने के लिए हमारी मदद कर रहा था। उन दिनों छात्रों को दैनिकों से ही रिजल्ट मालूम होते थे। तब पत्रिका अतिरिक्त अंक प्रकाशित करता था। रिजल्ट प्रकाशित करने में कई दिन लग जाते थे। एक बार तो आठ दिनों में रिजल्ट पूरा हुआ। तब हैंडकम्पोज और सिलेण्डर मशीन पर पत्रिका छपती थी। सारा स्टाफ इस काम में लगता था और सभी पूड़ी-सब्जी, दाने और नमकीन खाते थे। क्या आनन्द के दिन थे, आज के पत्रकार तो कल्पना भी नहीं कर सकेंगे।

मिलाप साइंस का स्टूडेंट था लेकिन उसकी प्रारम्भ से ही पत्रकारिता में रुचि रही थी। ऐसे उसने मालवीय रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, जयपुर से मैकेनिकल में बीई किया था। उसके बाद एमई करने दिल्ली चला गया। वहां एक वर्ष एमई डिजाइनिंग में पढ़ाई भी की थी किन्तु उसका मन नहीं लगा। वापस जयपुर आ गया। अपना स्वयं का उद्योग लगाने में काफी दौड़-धूप की। किन्तु इसे कोई काम पसन्द नहीं आया या अन्य कोई कारण था। आखिर में भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी कर ली। तभी कुलिशजी की पत्नी, भोजाई सा. ने कहा कि नेमू तो हम छोटू के लिए लेंगे। वे और कुलिशजी मिलाप को इसी नाम से पुकारते थे, गुलाब को बाबू।

मैंने कहा कि वह आपकी ही बेटी है, मैं निर्णय करने वाला कौन होता हूं? दोनों की सहमति होनी चाहिए। आखिर दोनों सहमत हुए और 7 फरवरी १९७७ को एक हो गए। कुलिशजी ने अपने दोनों पुत्रों की कोर्ट मैरिज कराई थी। लेकिन मेरे परिवार वालों के आग्रह से मिलाप ने कोर्ट मैरिज के साथ वैदिक विधि से भी विवाह रचाया था। मेरे और मिलाप के बचपन के सम्बन्ध हैं, तभी से मेरा उसका आज तक पुत्रवत सम्बन्ध कायम है। बचपन से मिलाप मेरे घर या उदयपुर बड़े भाई साहब के पास जाता तो अपने हाथ से ही रात की ठंडी रोटी और अचार लेकर खाता था। भगवतदादा को पापा, भोजाई सा. को बड़े बाईजी तथा मेरी पत्नी को नेमू की तरह बाईजी ही कहता था। अब ये तीनों नहीं हैं। मिलाप को बहुत प्यार करते थे। मेरे समूचे परिवार में किसी ने उससे फॉर्मल रिश्ता नहीं रखा, न उसने। ये सभी उसकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे।

मिलाप इतना साहसी था कि किसी वाहन की ड्राइविंग नहीं जानता था किन्तु कुलिशजी का वेस्पा स्कूटर लेकर अपने मित्र कुक्कू के साथ मालपुरा चला गया। रास्ते में स्कूटर स्किड हो गया, दोनों गिर पड़े। मिलाप के काफी चोट लगी। इसी तरह विवाह के दिन कुलिशजी की नई फिएट कार लेकर घर से तिलकनगर आने को निकल पड़ा। वह फिएट बिल्कुल नई थी और उसी दिन आई थी। कार चलाना तो जानता था, पता नहीं कैसे एक्सीडेंट कर बैठा। गाड़ी को नुकसान हुआ। ईश्वर का शुक्र है कि उसके चोट नहीं आई।

पढ़ने में अति तीव्र बुद्धि का था। जब इंजीनियरिंग में यहां पढ़ रहा था तब एग्जाम के दिनों में पौराणिक साहित्य और उपन्यास पढ़ता था और कक्षा में अव्वल रहता था। उसके सभी सहपाठी उसकी कुशाग्रता की चर्चा करते हैं। वे कहते थे कि क्लास में टीचर से ऐसे सवाल करता था उन्हें भी आन्सर देने में जोर आता था। सीमा सन्देश दैनिक के ललित शर्मा भी उसके सहपाठी थे। वे भी बहुत प्रशंसा करते हैं।

एडवेन्चरिज्म की एक घटना बताना चाहता हूं। केसरगढ़ में नई रोटरी मशीन की ट्रायल की जा रही थी। यह उसके इन्स्टालेशन से उसके साथ था। ट्रायल के समय पता नहीं किसी पुर्जे में या अन्य कोई कारण से अटकाव हो रहा था। इसने अपने हाथ से एडजस्ट करना चाहा। उसमें उसके दाहिने हाथ की दो अंगुलियों के पैरवे मुंह से कट गए। लहुलुहान हो गया। इसे एसएमएस अस्पताल ले गए। कटी अंगुलियों में टांके लगने थे। डॉक्टर पांडे लॉकेलाइज करना चाहते थे। इसने मना कर दिया। डॉक्टर साहब भी उसका साहस देखकर भौंचक्के रह गए। डॉक्टर साहब जब टांके लगा रहे थे, उसके चेहरे पर शिकन भी नहीं थी।

इसके पास फियेट थी। जयपुर से जोधपुर अस्सी के दशक में सपरिवार साढ़े तीन-चार घंटों मेें आ जाता था। सडक़ें बहुत खराब थी। किन्तु यह सौ किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गाड़ी चलाता था। एवरेज रफ्तार से सात-आठ घंटे लगने चाहिए। शुक्र है कि कभी अनहोनी नहीं हुई। सभी मना करते थे। मगर यह मानता ही नहीं था।

सत्तर के दशक में पत्रिका की प्रसार संख्या बढऩे लगी थी। उसकी लोकप्रियता को चार चांद लगने लगे थे। पत्रिका का काम बढ़ता जा रहा था। विश्वस्त सहयोगियों की आवश्यकता थी। हमारे अग्रह पर कुलिशजी ने गुलाब और मिलाप को उनकी नौकरी छुड़वाना मंजूर कर लिया। गुलाब वायुसेना में था और मिलाप भिलाई स्टील प्लांट में काम कर रहा था। दोनों कुछ वर्ष जयपुर रहे और हमारे साथ पत्रिका का काम समझने लगे। यह महसूस किया गया कि जोधपुर तथा उदयपुर के इंटीरियर क्षेत्रों में पत्रिका पहुंचने तक यह चौबीस घंटे पिछड़ जाता है। इसलिए वहीं से प्रकाशन शुरू करने का निर्णय हुआ। पहले उदयपुर को चुना। वहां का भार गुलाब को सौंप उसे वहां भेजा गया। एक वर्ष बाद जोधपुर से प्रकाशन शुरू किया और मिलाप को वहां भेजा।

जोधपुर में मिलाप की पत्रकारिता की स्किल दिखाई देने लगी। इसने महसूस किया कि पत्रिका को क्षेत्रीय लोगों से जोड़ा जाए। इसके लिए उसने क्षेत्र का एक्सटेन्सिव टूअर किया। यह अपनी फिएट लेकर निकल गया। गांव-गांव गया। उसने वहां की आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषायी, रहन-सहन, खान-पान आदि को समझा। उसको गांवों के नाम तक याद हो गए। वहां की लाइफ की गहराई को जाना। उनके कवरेज के लिए जहां संवाददाता और न्यूजपेपर एजेंट नहीं थे, नियुक्त किए। शीघ्र अखबार मिले इसकी व्यवस्था की। जोधपुर में स्थानीय दैनिक और भी थे। लेकिन उनमें वह कवरेज नहीं होता था। इससे पत्रिका की मांग तथा पाठकों की संख्या बढऩे लगी। मिलाप अपने संवाददाताओं तथा एजेंटों से सीधा संपर्क रखता था और पाठकों की प्रतिक्रिया पूछता था।

मिलाप का प्रयत्न था कि जोधपुर संस्करण जयपुर की तुलना में बीस नहीं इक्कीस हो। जयपुर में जो छपता था, वह जोधपुर में भी कवर किया जाता था। एक घटना बताता हूं, जिससे मैं उससे नाराज हो गया। जयपुर में 1981 की अतिवृष्टि से सारे मार्ग अवरुद्ध हो गए। एडिटोरियल का पेज पाइप द्वारा उदयपुर-जोधपुर भी भेजा जाता था। जोधपुर का मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बसें बंद हो गई। उसने मुझे फोन कर कहा कि आप पाइप भिजवाने के लिए एक गाड़ी अवरुद्ध मार्ग तक भेजें और मैं जोधपुर से गाड़ी भेज दूंगा। एक व्यक्ति पानी में पाइप लेकर आए और जोधपुर की गाड़ी में रखवा दे। मैं आदमी को पानी में उतारने की रिस्क नहीं लेना चाहता था। मैंने उसका आग्रह स्वीकार करने से मना कर दिया और उस पर नाराज हुआ। हमारे बीच बोल-चाल भी हुई। मैंने वह रिस्क नहीं ली और कहा कि बिना उन पेजों के ही पत्रिका निकालो। वह भी नाराज हुआ। इस घटना का अर्थ है कि वह जोधपुर संस्करण को जयपुर से पोचा नहीं रहने देना चाहता था। (क्रमश:)

(राजस्थान पत्रिका के पूर्व सम्पादक विजय भंडारी की अप्रकाशित पुस्तक ‘भूलूं कैसे’ में मिलापजी के जीवन और कृतित्व पर लिखे गए अध्याय से)

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