देश आज आजादी की 69वीं वर्षगांठ मना रहा है।
दिल्ली से लेकर समूचे देश में उल्लास है, उत्साह है। लाल किले की प्राचीर से
प्रधानमंत्री, तो अलग-अलग राज्यों में मुख्यमंत्री जन कल्याण की लम्बी-चौड़ी
घोषणाओं के साथ अपनी उपलब्घियों का बखान करेंगे। गली-मोहल्लों से लेकर घरों तक लोग
तिरंगा फहराने के साथ आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को याद करेंगे। वैसे
ही जैसे 68 सालों से करते आ रहे हैं। लेकिन क्या इसे ही सच्ची स्वतंत्रता माना जाए?
क्या परम्पराओं का निर्वहन करना ही स्वाधीनता दिवस की पहचान हो सकती है? स्वतंत्रता
का अर्थ हमारी संस्कृति का आजाद होना है, न कि शरीर का आजाद होना।
स्वाधीनता दिवस
पर आज सभी देशवासी संकल्प लें कि भले ही हम कोई भी भाष्ाा बोलते हों, किसी भी
भाष्ाा में सोचते हों लेकिन हमारी संस्कृति हमेशा भारतीय रहे। दुर्भाग्य की बात है
कि आजादी के 68 सालों बाद भी लोकतंत्र के तीनों पाए अंग्रेजी संस्कृति में ही जी
रहे हैं। अंग्रेजों के बनाए कानून, संविधान और धाराओं के सहारे ही देश आज भी चल रहा
है।
कह सकते हैं कि हमारा शरीर भले भारतीय हो लेकिन उसकी आत्मा तो अंग्रेजियत पर ही
आधारित है। हमारा शरीर आजाद हो गया लेकिन दिमाग आज भी गुलामी की जंजीरों को नहीं
तोड़ पा रहा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारा आज तक राष्ट्रमंडलीय यूनियन की सदस्यता
नहीं छोड़ पाना माना जा सकता है। राष्ट्रमंडलीय देशों का समूह उन राष्ट्रों का
संगठन है जो कभी न कभी अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं। वही देश आज बड़े चाव से
अंग्रेजों का खेल “क्रिकेट” खेलते हैं। और तो और राज्य विधानसभाओं तक में कॉमनवेल्थ
यूनियन बनी हुई हैं। इनकी साल में एक बार बैठक होती है जिनकी शुरूआत ही इंग्लैण्ड
की महारानी की सलामती की दुआएं मांग कर होती है। क्या किसी स्वतंत्र देश को ऎसा
करना शोभा देता है? क्या इस आचरण को गुलामी का अवशेष्ा नहीं माना जाए?
क्या सरकार
में बैठे लोग देशवासियों को इसमें रहने की मजबूरी बता सकते हैं। “भारत” में रहने
वाली 99 फीसदी जनता की सोच और अपने आपको “इंडिया” वासी मानने वाले एक फीसदी
“कर्णधारों” की सोच के बड़े अंतर ने देश को सही मायनों में कभी आजाद होने ही नहीं
दिया। सिर्फ झंडा फहराना, आजादी के गीत गाना या स्कूलों में लड्डू बांट देने को
स्वतंत्रता कैसे और क्यों माना जाए? केन्द्र में आई नई सरकार को इस अवधारणा को
बदलना चाहिए। ऎसी शिक्षा-व्यवस्था लागू होनी चाहिए जो देशवासियों को चरित्रवान भी
बनाए और भारतीय संस्कृति और भारतीयों के बारे में सोचना भी सिखाए। अंग्रेजी
संस्कृति की दासता से देश को मुक्त कराए। असली मायनों में आजादी तभी मिलेगी जब
हमारी आत्मा पूरी तरह भारतीय बन पाएगी।