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विसंगतियां दूर कर फसल व विपणन की नई नीति बने

locationनई दिल्लीPublished: Jul 02, 2020 05:58:02 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

‘आधुनिक विकास की होड़’ पर प्रतिक्रियाएं’

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कृषि प्रधान देश में किसानों की अनदेखी, उन्हें तकनीकी व वैज्ञानिक सहयोग और बाद में बाजार सुलभ करवा पाने में अक्षमता के बयान के साथ आगे के लिए राह दिखाते पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘आधुनिक विकास की होड़Ó को प्रबुद्ध पाठकों और किसानों ने वर्तमान हालात का सटीक वर्णन माना है। उन्होंने सरकार से इस पर अमल कर फसल व विपणन की नए सिरे से नीति बनाने की अपेक्षा की है, जिसमें मौजूदा समस्याओं को दूर किया गया हो। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से
पारदर्शिता हो हमारी योजनाओं में…

पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का अग्रलेख ‘आधुनिक विकास की हो?’ सटीक और प्रेरक है । भारत कृषि प्रधान देश है। यहां आज भी बुनियादी तौर-तरीकों से अर्थात गोबर की खाद, हरी पत्तियों की खाद से खेती की जाए तो धरती सोना उगलती है किंतु आधुनिक विकास की होड़ में विदेशों की तर्ज पर खेती की जा रही है जिससे खेती की गुणवत्ता कमजोर हो रही है ।भारत का समुचित विकास तभी संभव है जब भारतीय राजनेता व सरकारी अफसर पारदर्शितापूर्ण योजनाएं बनाएं।
– पूरण सिंह राजावत, जयपुर ।
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मजबूत कृषि नीति का हो ध्येय
आधुनिक विकास की होड़ में किसानों की दुर्दशा पर गुलाब कोठारी ने सही लिखा है। जब तक कृषि व किसानों की दशा में सुधार के लिए राज्य सरकार व केंद्र सरकार मजबूत कृषि नीति का ध्येय न बनाएंगी, फसल बीमा योजना का उन्हें समय पर लाभ न मिलेगा, किसानों को उत्पादन लागत से अधिक लाभ न मिलेगा न तो किसानों की आत्महत्याएं थमेंगी और न ही विकास का उसे फायदा दे पाएंगे।- शिवजी लाल मीना, पूर्व बैंक अधिकारी जयपुर
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रोजगार के अवसर बढ़ाएं
ग्रामीण क्षेत्र में जहां जो कच्चा माल उपलब्ध हों उसी आधार पर उद्योग व प्रोसेसिंग इकाई की स्थापना की जानी चाहिए। और इसके लिए वहीं के बेरोजगार युवाओं को ब्याज मुक्त कर्ज देकर इन रोजगार केन्द्रो की स्थापना करवानी चाहिए ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिले व कच्चे माल की खरीद मे लागत भी कम हों। इस प्रकार की योजना से किसान सहित विभिन्न स्तर पर अनेक लोग रोजगार प्राप्त कर पाएंगे।
प्रेम शर्मा रजवास, टोंक
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कृषि की दुर्दशा पर सटीक टिप्पणी
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि की जिस तरह दुर्दशा हो रही है, उस पर गुलाब कोठारी ने सटीक टिप्पणी की है। सरकारी तंत्र की अवहेलना और मुआवजे का भ्रमजाल किसानों को जड़ से उखाड़ रहा है। इसीलिए किसान का बेटा भी आज खेती किसानी नहीं करना चाहता है। कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए इन विसंगतियों को सुधारा जाना जरूरी है।
डॉ. शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर
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किसानों तक पहुंचे पूरा लाभ
किसान प्रत्येक योजना और भाषण का केन्द्र आज भी है। लेकिन उसके जीवन को कोई नहीं देख नहीं रहा है। कोठारी ने सही लिखा है किअपने देश में किसानों के लिए योजनाएं तो बहुत बनती हैं लेकिन उनका लाभ किसानों तक सही तरीके से नहीं पहुंच पा रहा है।
हरीश भावनानी, भोपाल सिटीजन्स फोरम, भोपाल
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एक फसली व्यवस्था के दुष्परिणाम
यह सच है कि पहले बहुलतावादी फसलें होने से जमीन की सेहत ठीक रहती थी, लेकिन अब फसल बीमा के चक्कर में भेड़चाल से स्थिति विपरीत हो गई है। इस पर समय रहते विचार करने की आवश्यकता है। सरकार और कृषि विभाग को नए सिरे से फसल और विपणन नीति बनानी चाहिए। तभी हम भारतीय कृषि को संरक्षित कर पाएंगे, अन्यथा रासायनिक खाद के साथ-साथ एक फसली व्यवस्था के घातक परिणाम हमें भुगतने होंगे।
विजय सिंह कुसरे, समाजसेवी, छिंदवाड़ा
विकास से दूर किसान
देश आजाद हुआ है लेकिन अभी भी लोग गुलाम हैं। किसानों का तो आज तक विकास नहीं हुआ। किसानों के लिए कोई भी सरकार आई, लेकिन कुछ नहीं कर पाई। किसान आज भी अपनी समस्याओं से घिरा हुआ है। अपनी उपज के सही दाम के लिए लिए परेशान होता है। प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने की वजह से किसानों को उत्पादक चीजों का सही दाम नहीं मिल पाता।
रमेश गायकवाड़, किसान नेता, बैतूल
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विकास की सिर्फ बातें हुईं
यह बात सही है कि किसान की अगली पीढ़ी भी अब इस देश में खेती किसानी का विकल्प ढूंढ रही है। वजह यह है कि केंद्र की सरकार हो या प्रदेश सरकार, किसानों के विकास के संबंध में आज तक सिर्फ बातें ही होती रही हैं। इस वास्तविकता को अग्रलेख में बहुत ही स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है।
श्रीराम सिंधिया, अध्यक्ष, किसान संघ, मंडला
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कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर बनें योजनाएं
कृषि विभाग से कई बार ऐसी योजनाएं बनती हैं, जिनका धरातल व्यावहारिक नहीं होता। इसलिए किसानों को लाभ नहीं मिल पाता। योजनाएं बनाते समय उनके गुण दोषों का पहले अध्ययन होना चाहिए और उसके बाद कृषि वैज्ञानिकों से सलाह करके योजनाएं बनाई जाएं तो बेहतर हो।
सुरेंद्रसिंह तोमर, पूर्व सह निदेशक अनुसंधान, आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र, मुरैना
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किसानों को सही दाम नहीं मिल पाते
हमारी शिवपुरी में कई फसलों का बंपर उत्पादन होता है, लेकिन कोई फूड प्रोसेसिंग यूनिट न होने से किसान को सही दाम नहीं मिल पाते हैं। मूंगफली, प्याज, टमाटर, कद्दू आदि की बंपर पैदावार का लाभ बिचौलिए उठा रहे हैं।
विष्णु अग्रवाल, सचिव, चैंबर ऑफ कॉमर्स, शिवपुरी
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खेती किसानी से जुड़े नई पीढ़ी
आधुनिक विकास की होड़ को त्याग कर हमें जिस स्थान पर जो पैदा होता है, उसी का उद्योग स्थापित करने की योजना बनाई जाए। अग्रलेख में सही लिखा है कि किसानों की नई पीढ़ी खेती करने को तैयार नहीं है। सरकार को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए ताकि नई पीढ़ी खेती किसानी से जुड़ी रहे।
पंकज जडिय़ा, पूर्व अध्यक्ष, रोटरी क्लब, दतिया
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उन्नत व फायदे का सौदा बने कृषि
सिर्फ आत्मनिर्भर कहने से देश आत्मनिर्भर नहीं बनेगा। उसके लिए प्रयास करने होंगे। कृषि इस देश की रीढ़ है। उसे उन्नत और फायदे का सौदा बनाना होगा ताकि युवा उसे भी कॅरियर के रूप में अपनाएं।
चंद्रप्रभाष शेखर, पूर्व मंत्री, भोपाल
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किसान को ठगने वाली ही योजनाएं
आधुनिकता के नाम पर सरकारी अधिकारियों ने केवल किसानों को ठगने की योजना बनाई है, न कि उसके विकास की। धरातल पर कोई योजना है ही नहीं। कृषि वर्तमान समय में भी सर्वाधिक प्राकृतिक, आर्थिक और सरकार द्वारा दी गई कृत्रिम परेशानियों का सामना कर रही है। परिणाम में केवल किसानों की आत्महत्या ही दिख रही है।
दिनेश लेगा, आम किसान यूनियन, हरदा
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आधुनिकता की होड़ में भूले ताकत
आधुनिकता की होड़ में आज लोग अपनी ताकत को भूल गए हैं। सुख सुविधाओं की होड़ में विकास की जगह विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। परंपरागत साधनों, सुविधाओं की जगह मशीनीकरण के मोहताज होते जा रहे हैं। नेता, अफसरशाह भी स्वप्नों की खेती कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में परंपरागत खेती की जगह रसायनों की खेती की जा रही है। जैविक खेती को सरकारी महकमे भी तवज्जो नहीं दे रहे हैं। किसान भी सरकारी लुभावनों में आकर अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर रहे हैं। नतीजतन, किसान खुद परेशान हैं।
राजेन्द्र राय, किसान नेता, रायसेन
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सरकार की कोई मदद नहीं
कृषि के वर्तमान हालात को लेकर कोठारी ने बेहद प्रभावी लिखा है। किसान मजबूत है तो मंडियों तक उपज जा रही है और नहीं है तो सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती। मध्यप्रदेश में ही कई योजनाएं कृषि विभाग लगातार बंद करता जा रहा है।
राधेश्याम धाकड़, प्रगतिशील किसान एवं पदाधिकारी किसान संगठन, रतलाम
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किसानों को बेबस बना दिया
कृषि क्षेत्र में तरक्की कैसे होगी? सरकारों ने किसान को तो बेबस बना दिया है। बीज, खाद, बिजली से लेकर हर महत्वपूर्ण जरूरत के लिए किसान परेशान है। उपज अच्छी आए तो भी बाजार नहीं मिलता। मुनाफाखोरी के कारण किसान की उपज कम दाम पर ले ली जाती है। गांव और कस्बों में संसाधन भी नहीं बढ़ाए जा रहे हैं। इससे नए अवसर तलाशने का मौका नहीं मिलता।
धु्रवसिंह पंवार, प्रतिनिधि, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, उज्जैन
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