पूरा देश इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। गणतंत्र दिवस पर इस महोत्सव के संदर्भ में भी गहरे से विचार करने की जरूरत है। इसलिए कि पहली बार देश में ऐसा हुआ है जब हमारे स्वाधीनता सेनानियों की स्मृति को जीवंत रखने, आजादी आंदोलन से जुड़ी घटनाओं के आलोक में, देश की संस्कृति और लोगों के शानदार इतिहास को अक्षुण्ण रखने का यह पर्व देशभर में विविध स्तरों पर मनाया जा रहा है। विचार करें, सूर्य से हम सभी आलोकित होते हैं और सूर्य का यह प्रकाश ही चंद्रमा में चांदनी बनकर धरती पर प्रतिबिम्बित होता है।
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Patrika Opinion: करें राजनीति की दिशा बदलने का संकल्प चंद्रमा अमृतांशु है। अमृत किरणों वाला। इसकी किरणें कभी मिटती नहीं हैं। अमृत तत्त्व से ओत-प्रोत होने के कारण ये अक्षीण हैं। भारतीय संस्कृति को भी मैं इसी तरह अक्षीण मानता हूं। इकबाल का तो शेर है-‘यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।’
आजादी का अमृत महोत्सव दरअसल हमें हमारे राष्ट्रीय प्रेम, सौहार्द और अध्यात्म की गौरवशाली परम्पराओं के आलोक में स्वतंत्रता के वास्तविक रहस्य की अनुभूति कराने वाला पर्व है। यह उन लोगों के प्रति समर्पित है, जिनके कारण देश विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हुआ। उन लोगों की उपलब्धियों को समर्पित है जिन्होंने देश को सशक्त और समृद्ध बनाने की अतुल्य सफल गाथाएं लिखीं। देश के सर्वांगीण विकास में जन भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
उद्देश्य यही है कि स्थानीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाने वाले जो छोटे-छोटे प्रयास और बदलाव आत्मनिर्भर भारत की भावना के लिए हुए हैं, वे राष्ट्रीय उपलब्धि का रूप ग्रहण कर सकें। इस महोत्सव का वास्तविक उद्देश्य भारत के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक क्षेत्र में महान सफलताओं के लिए किए गए प्रयासों के इतिहास को संरक्षित करना है ताकि भावी पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके। मैं इसे नई पीढ़ी का प्रेरणा पर्व भी कहता हूं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान के अंतर्गत हर क्षेत्र में नियोजित विकास के आधार पर देश में विकास की सुदृढ़ नींव रखी गई। भारतीय संस्कृति से जुड़ा जो दर्शन है, हमारी जो उदात्त जीवन परम्पराएं हैं – संविधान उसे एक तरह से व्याख्यायित करता है। मेरा मानना है कि राष्ट्र कोई भू-भाग भर नहीं, बल्कि अपने आप में विचार है। देश को विचार संज्ञा में देखने का अर्थ ही है ऐसा राष्ट्र, जिसमें स्त्री-पुरुष में, जाति और धर्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में किसी तरह का कोई भेद नहीं है। जहां अनुभव और ज्ञान सहभागी हैं।
भारत का अर्थ ही है – ज्ञान और दर्शन की महान परम्परा, जिसमें वैदिक ऋचाओं से लेकर आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन तक का सार आ जाता है। सारे विश्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सूत्र के साथ अपना परिवार मानने का संदेश हमारे राष्ट्र ने दिया है।
आज देश महिलाओं, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ों, दिव्यांगों, आदिवासियों को सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान कर तेजी से आगे बढ़ रहा है। पर मैं यह मानता हूं कि वास्तविक लक्ष्य तभी पूरा होगा जब पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को समानता और न्याय मिलेगा। यह जरूरी है कि हमारी नई पीढ़ी आत्मनिर्भर हो। मानवीय मूल्यों से शिक्षित हो। हम सभी का कत्र्तव्य है कि आत्मनिर्भरता के और बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने में हम पूरी तरह से जुट जाएं।
कोविड महामारी के बाद का विश्व नया होगा। नई व्यवस्था होगी, और मुझे विश्वास है यह नई व्यवस्था भारतीय संस्कृति के उदात्त मूल्यों से प्रेरित होगी। इसलिए कि हमने कोविड के विकट दौर में भी केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि विश्व मानवता को दृष्टिगत रखते हुए औषधियों और वैक्सीन की विश्व के दूसरे देशों में भी आपूर्ति की।
कठिन चुनौतियों के बावजूद पिछले 75 वर्षों में देश ने विभिन्न क्षेत्रों में महान सफलताओं को अर्जित किया है। अनाज की कमी से कभी जूझने वाला भारत आज विश्व का बड़ा अनाज निर्यातक है। स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव की स्थिति से उबरकर महामारी के दौर में देश आज टीकों का वैश्विक आपूर्तिकर्ता हो गया है। उभरते राष्ट्रवाद के साथ सूचना प्रौद्योगिकी और विशेष ज्ञान आधारित उद्योगों में आज देश ने बड़ी छलांग लगा ली है। विशाल जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा हमने प्राप्त कर ली है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें भारत तेजी से आगे नहीं बढ़ रहा है।
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नेतृत्व: क्यों पैदा होता है नियंत्रण में विरोधाभासआइए, आज गणतंत्र दिवस पर ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के आलोक में राष्ट्र को ज्ञान और विकास के पथ पर ले जाने के लिए हम सभी संकल्पबद्ध होकर प्रयास करें। देश की उन्नति के लिए नवीन राहों का सृजन करें। हमारा सबका सुख सामूहिक सुख हो और दुख सामूहिक दुख। राष्ट्र के गौरव में ही हमारा गौरव हो, इस समष्टि भाव के साथ गणतंत्र दिवस पर देश के सर्वांगीण विकास की राह हम सभी प्रशस्त करें।