सेनाओं की वापसी शुभ, सतत निगरानी जरूरी
- चीन और भारत के बीच पिछले साल मई में शुरू हुआ गतिरोध समाप्त होने की शुरुआत हो चुकी है।

लद्दाख में अग्रिम मोर्चे पर पिछले करीब नौ महीनों से तैनात भारत-चीन की सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू होना शुभ संकेत कहा जा सकता है। बुधवार को चीनी अधिकारियों ने यह ऐलान किया था और गुरुवार को भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में यह सूचना दी है। उन्होंने बताया कि दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने के समझौते के अनुसार भारत को एक इंच जमीन भी नहीं गंवानी पड़ेगी। समझौते की तीन महत्त्वपूर्ण शर्तों में दोनों देशों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान करना, एलएसी की स्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश न करना और दोनों पक्षों का समझौते की सभी शर्तों को पूर्ण रूप से मानना जरूरी होगा। इस तरह दोनों देशों के बीच पिछले साल मई में शुरू हुआ गतिरोध समाप्त होने की शुरुआत हो चुकी है, ऐसा कहा जा सकता है। हालांकि, सेनाओं की वापसी क्रमवार होनी है और जब लद्दाख का गतिरोध समाप्त हो जाएगा, तब अन्य इलाकों को लेकर भी बात आगे बढ़ेगी, ऐसी उम्मीद भी जताई गई है।
विपक्ष इसे पुरानी स्थिति का बहाल होना नहीं मान रहा है, क्योंकि पुरानी स्थिति के पूरी तरह बहाल होने को लेकर उसे अब भी संदेह है। नई शर्तों के अनुसार, एलएसी पर फिंगर-4 से लेकर फिंगर-8 तक के 23 किलोमीटर इलाके को पेट्रोलिंग से मुक्त रखा गया है। यानी निगरानी के लिए किसी देश की सेना वहां नहीं जा सकेगी। इससे पहले फिंगर-8 तक भारतीय सेना और फिंगर-4 तक चीनी सेना पेट्रोलिंग करती रही है। टकराव की वजह यही है कि भारत फिंगर-8 को एलएसी मानता रहा है और चीन ने फिंगर-4 को एलएसी बनाने की एकतरफा कोशिश की थी। बहरहाल, अभी यह नहीं कहा जा सकता कि एलएसी को लेकर विवाद टल गया है और चीन ने अपना दावा छोड़ दिया है।
सेनाओं की वापसी शुरू होने के बावजूद चीन पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता। इससे पहले भी सैन्य स्तरीय वार्ता में सेनाओं के पीछे हटने पर सहमति बनाकर चीन धोखा देता रहा है। हमें सतर्क और सावधान तो रहना ही होगा। सैन्य कमांडरों के बीच नौवें दौर की बातचीत से हुई इस प्रगति का स्वागत करते हुए यही कहना उचित होगा कि हमें चीन की हरकतों पर बारीक नजर रखनी होगी। इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि एलएसी पर टकराव बढ़ाकर उसने भारत की ताकत का अंदाजा भी लगा लिया और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को भी टटोल लिया है। भारतीय सेनाओं ने जिस तरह मुकाबला किया और अमरीक ा सहित अन्य महाशक्तियों ने जिस तरह भारत की तरफदारी की वह दुनिया में भारत की बढ़ती साख का असर माना जा सकता है।
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