विरोध का हक, लेकिन हिंसा की इजाजत नहीं
- गणतंत्र दिवस के दिन किसानों के प्रदर्शन ने हिंसक और उपद्रवी रूप ले लिया।
- दिल्ली पुलिस के दो सौ से ज्यादा जवान घायल हुए हैं।
- दिल्ली पुलिस ने अब तक 22 एफआइआर दर्ज की हैं।
- योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत समेत दस कि सान नेता भी नामजद किए गए हैं।

देश के 72वें गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरह से किसानों के प्रदर्शन ने हिंसक और उपद्रवी रूप ले लिया, उसने न सिर्फ आंदोलन को बदनाम कर दिया, बल्कि उसे कमजोर भी कर दिया। यह आंदोलन दो माह से शांतिपूर्वक जारी था और लोगों की सद्भावना उसके साथ थी, लेकिन अचानक 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान यह आंदोलन उपद्रवियों के हाथों में आ गया। उसके बाद जो कुछ हुआ, उसे पूरे देश ने देखा। देश के गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी भीड़तंत्र के हवाले हो गई और पूरे दिन हंगामा होता रहा। दिल्ली पुलिस ने अब तक 22 एफआइआर दर्ज की हैं, जिनमें योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत समेत दस कि सान नेता भी नामजद किए गए हैं।
दिल्ली पुलिस का दावा है कि दो सौ से ज्यादा जवान घायल हुए हैं। उपद्रवी किसानों ने जवानों पर ट्रैक्टर तक चढ़ाने के प्रयास किए। माना जा रहा है कि अब आंदोलन को सख्ती से भी कुचला जा सकता है। हालांकि इसका अंदेशा किसान नेताओं को भी है और उन्होंने जैसे ही उपद्रव की सूचना मिली थी, तत्काल किसानों को दिल्ली छोडऩे के निर्देश दिए थे। साफ कहा था कि किसान दिल्ली बॉर्डर पर आएं। बुधवार को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी किसानों के उपद्रव पर नाराजगी जाहिर की और किसानों को दिल्ली से बाहर निकालने की मांग की।
हालांकि सवाल दोनों ओर से हैं। आंदोलनकारी किसानों का दिल्ली के भीतर उपद्रव सवालों में है, तो सवाल इस पर भी है कि कुछ लोगों के कारण क्या पूरे आंदोलन को ही सवालों के घेरे में लाया जा सकता है? किसान दो महीने से शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन में उपद्रव की आशंका व्यक्त करते आ रहे हैं। ऐसे में कुछ हजार किसान दिल्ली में प्रवेश कर जाते हैं, उनकी अगुवाई एक सांसद का करीबी नेता करता है, तो सवाल दोनों ओर हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?
किसान यह बेहतर तरीके से समझते हैं कि उपद्रव उनके आंदोलन को कमजोर करेगा। यही वजह है कि दो महीने से वे लोकतांत्रिक तरीके सेआंदोलन कर रहे थे। अचानक ऐसा क्या हुआ कि कुछ किसान उपद्रवी हो गए? यह वह सवाल है जिसका जवाब सरकार और किसान नेताओं को खोजना होगा। लोकतंत्र में विरोध करने का हक सभी को है, लेकिन हिंसा के रास्ते पर जाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है। ऐसे में जरूरी है कि जिन लोगों ने हिंसा की, उनको तलाश कर कार्रवाई हो, लेकिन इसकी आड़ में किसान आंदोलन को जबरन दबाने के प्रयास नहीं होने चाहिए। ताकत के बल पर किसी जन आंदोलन को दबाने के प्रयास नई समस्या पैदा कर सकते हैं।
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