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ओपिनियन

आपदा में अय्याशी

जांच के आदेश तो दे दिए हैं लेकिन जांच में
खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। आपदा के समय जनता के पैसे पर ऎश करने वाले अफसरों के
खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए

May 31, 2015 / 10:50 pm

शंकर शर्मा

Uttarakhand flood

Uttarakhand flood

दोसाल पहले उत्तराखंड में बाढ़ के कारण आई आपदा के समय राहत के नाम पर अफसरों की लूट संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का निर्लज्जतम उदाहरण मानी जा सकती है। एक तरफ जब प्राकृतिक कहर ने पूरे उत्तराखंड ही नहीं, समूचे देशवासियों की सांसें थाम रखी थी, उस समय राज्य के अफसर अपनी “अफसरी” मना रहे थे। हजारों पीडित जहां भूखे-प्यासे जान बचाने को भटक रहे थे, वहीं उत्तराखंड के अफसर चिकन-बिरयानी का लुत्फ उठा रहे थे और गुलाब जामुन का स्वाद चख रह थे।

सूचना के अधिकार से मिली जानकारी आंखें खोलने वाली तो हंै ही, यह भी संदेश देती हैं कि आपदा के समय अफसर अगर ऎसा कर सकते हैं तो सामान्य दिनों में उनका आचरण क्या रहता होगा? दो साल देर से ही सही लेकिन जो खुलासा हुआ है वह शासन-प्रशासन चलाने वालों के आचरण का सटीक चित्रण करता है।

अफसरों के दुस्साहस का इससे जीता-जागता उदाहरण और क्या होगा कि आपदा आने से छह महीने पहले से ही राहत कार्य करना दिखा दिया गया। ऎसा करने वाले अफसरों को इस बात का डर रहा ही नहीं होगा कि भविष्य में इनकी करतूतों की पोल खुल सकती है। उत्तराखंड में बाढ़ के बाद जब हजारों पीडित सर्दी से ठिठुरते हुए राहत शिविरों की तलाश में जुटे थे तब इनकी मदद करने पहुंचे अफसर सात-सात हजार रूपए प्रतिदिन के कमरे में रह रहे थे। राहत कार्यो के निरीक्षण के नाम पर 94 लाख रूपए पेट्रोल पर फूंकने के बिल भी सरकारी खाते से वसूल किए गए।

राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अफसरों की लूट की जांच कराने के आदेश तो दे दिए हैं लेकिन ये जांच खानापूर्ति करके समाप्त नहीं हो जानी चाहिए। आपदा के समय जनता के पैसे पर ऎश करने वाले अफसरों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऎसे अफसरों को तो सेवा से बर्खास्त कर घर बिठा देना चाहिए ताकि दूसरे अफसरों की आंखें खुल सकें।

ये ऎसा अपराध है जिसे माफ नहीं किया जा सकता। ऎसे अफसरों और उनके खर्चो के बिल पास करने वालों की पहचान भी जनता के बीच लाई जानी चाहिए। साथ ही ऎसी आपदाओं के समय राहत और बचाव कार्यो के लिए स्थायी दिशा-निर्देश भी तय किए जाने चाहिए।

मुसीबत के ऎसे हालात में अफसरों को ऎसी मनमानी करने की छूट कैसे दी जा सकती है? होना तो ये चाहिए कि ऎसे दोष्ाी अफसरों को कठोर सजा तो मिले ही, ऎश के नाम पर उड़ाया गया धन भी इन्हीं से वसूला जाए। इस तरह का उदाहरण पेश किया गया तो भविष्य में किसी राजनेता या अफसर की जुर्रत नहीं होगी कि वह जनता के धन को यूं लुटा सके।


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