अब हरित क्रांति से मिले महत्त्व का दौर बीत चुका है। खेती से मुनाफा लगातार कम हुआ है और किसान कर्ज के जाल में फंस चुके हैं। बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है और तेजी से बढ़ता अवसाद उन्हें अपराध व नशे की दुनिया का गुलाम बना रहा है। पंजाब के लिए यह समस्या नए तरह की है पर है एकदम देसी। देश के पिछड़े इलाकों के युवा तो हमेशा से ऐसे दंश झेलते रहे हैं। गुमराह भी होते रहे हैं। कभी व्यवस्था परिवर्तन की क्रांति के नाम पर तो कभी धार्मिक अस्मिता की रक्षा के लिए उनका इस्तेमाल किया जाता रहा है। पंजाब में छिट-पुट आपराधिक हरकतों मिल रहे ऐेसे संकेत चिंतित करने वाले हैं। पिछले कुछ सालों में कई गैर-सिख नेताओं की हत्या में विदेश में बैठे अलगाववादी आकाओं की भूमिका के सबूत मिले हैं। पुलिस मान रही है कि खालिस्तान समर्थक संगठनों व स्थानीय आपराधिक गिरोहों की मदद से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ अपने उद्देश्य पूरे कर रही है।
इसलिए खुफिया विभाग की इस सूचना को हल्के में लेना ठीक नहीं होगा कि दो खालिस्तानी आतंकी संसद को उड़ाने की मंशा लेकर नेपाल के रास्ते देश में घुस चुके हैं। दोनों के संबंध नाभा जेल से भागे आतंकी हरमिंदर सिंह मिंटू से बताए गए हैं। जेल से भागने के बाद दिल के दौरे से मर चुके खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के स्वयंभू प्रमुख मिंटू को आइएसआइ का सहयोग था और वह स्थानीय युवाओं को आतंक के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता रहा था। यह कहने की जरूरत नहीं कि पंजाब के युवा आतंक के रास्ते पर चलने का अंजाम जानते हैं और किसी के बहकावे में जल्दी नहीं आएंगे पर बेरोजगारी और अवसाद कभी किसी को विवेकशून्य बना सकता है। इसलिए विदेशी साजिश से सावधान रहने के साथ-साथ हमें देशी स्थितियों में सुधार लाने पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए।