ऐसे दौर में जहां कॉरपोरेट हस्तियां अपने घर ज्यादा से ज्यादा वेतन ले जाकर धनकुबेर का प्रतीक बन रही हैं, वहीं कॉरपोरेट कंपनियों के बाकी कर्मचारियों का वेतन असंतोषजनक होता जा रहा है। कंपनियों के मुनाफे की तुलना में मध्यम एवं निम्न श्रेणी के कार्मिकों का वेतन पिछले कुछ वर्षों में धीमी गति से बढ़ा है। हालांकि किसको- कितना वेतन दिया जाए और वेतन में कितना इजाफा किया जाए, इस बारे में कोई नियम या फिर कंपनियों पर कोई पाबंदी नहीं है। लेकिन सेबी के नियमों के तहत एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियों के लिए हर साल दिए गए वेतन का खुलासा जरूरी है ताकि निवेशकों को कंपनी के वेतन ढांचे के बारे में पता चल सके।
वर्ष 2017-18 में एनएसई में दर्ज कंपनियों के मुनाफे में औसतन 4.65 फीसदी की ही वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि कंपनियों के सीईओ के वेतन में औसतन 31.02 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। वेतन के मामले में ऑटो कंपनियों के प्रमुख सबसे आगे रहे हैं। देखा जाए तो देश की प्रमुख कंपनियों के सीईओ के वर्तमान वेतन का औसत उन्हें पांच वर्ष पहले दिए गए औसत वेतन की तुलना में लगभग दोगुना हो गया। चौंकाने वाली बात यह भी है कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां समान क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय कंपनियों के मुकाबले अपने सीईओ को करीब 50 फीसदी कम वेतन देती दिखाई दे रही हैं। सरकारी क्षेत्र में भी सरकार के मुख्य सचिव और तृतीय श्रेणी कर्मचारी के वेतन में निजी क्षेत्र की तरह भारी विषमताएं नहीं हैं।
ऐसे में देश में बढ़ती हुई वेतन विषमता और बढ़ती हुई आर्थिक असमानता के कारण सामान्य कर्मचारी और आम आदमी कम वेतन और कम आय के कारण विकास के लाभों की खुशियों से वंचित है। असमानता दूर की जाए तो कार्मिकों का प्रदर्शन भी नियोक्ता की उम्मीदों के अनुरूप होगा।