प्रदूषित होती जा रहीं नदियों को लेकर उठ रही चिंताओं के बीच दिल्ली सरकार ने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) के मानकों के अनुरूप नहीं पाए जाने वाले साबुन और डिटर्जेंट की बिक्री, भंडारण और परिवहन पर रोक लगा दी है। विशेषज्ञों का कहना था कि रंगाई उद्योगों, धोबी घाटों और घरों में इस्तेमाल होने वाले अमानक साबुन व डिटर्जेंट यमुना में जहरीला झाग बनने की बड़ी वजह है।
दिल्ली सरकार ने यमुना नदी में प्रदूषण की रोकथाम के प्रयासों की जो पहल की, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। भले ही ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के बाद सरकार हरकत में आई है। न केवल डिटर्जेंट व साबुन बल्कि यमुना-गंगा के साथ नदी किनारे बसे तमाम शहरों के उद्योगों का अपशिष्ट भी नदियों को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार रहा है। उद्योगों को ट्रीटमेंट प्लांट लगाने को कहा तो जाता है लेकिन कितने इसकी पालना कर रहे हैं, इसकी पुख्ता निगरानी होती ही नहीं। भयावहता का अंदाजा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस आकलन से लगाया जा सकता है कि देश की 450 में से 350 नदियां प्रदूषित हैं। दस साल पहले यह संख्या 121 ही थी।
एनजीटी ने दिल्ली सरकार को ये भी निर्देश दिए हैं कि वह घटिया साबुन व डिटर्जेंट के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान को लेेकर भी जन जागरूकता अभियान चलाए। न केवल यमुना, बल्कि दूसरी तमाम नदियों में दूषित जल की समस्या कम नहीं है। कोई एक प्रदेश प्रतिबंधात्मक उपाय करे, इतना ही काफी नहीं। नदियों को प्रदूषित होने से रोकने के लिए सरकारों को तो ठोस कदम उठाने ही होंगे, जनता को भी इन प्रयासों को सफल करने में भागीदार बनना होगा। नदियों को साफ रखने के अभियानों में धन का सदुपयोग हो, यह भी देखना होगा।