ताजा घटनाक्रम पर पाकिस्तान की सेना 'तटस्थ' होने का दावा कर रही है, पर इमरान खान की परेशानी बढ़ाने में उसकी भूमिका पर भी अंगुलियां उठ रही हैं। इमरान ने 2018 में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की मदद से हुकूमत संभाली थी। चार साल में जनरल बाजवा के साथ उनके समीकरण काफी बदल चुके हैं। उनकी जगह इमरान अपने पसंदीदा पूर्व आइएसआइ प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे, जबकि सेवा विस्तार पर चल रहे बाजवा पद पर बने रहना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि जनरल बाजवा के इशारे पर ही विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव की तैयारियां शुरू कीं। विपक्ष के बढ़ते दबाव को लेकर इमरान बार-बार कह रहे हैं कि वह हार नहीं मानेंगे। पाकिस्तानी सेना और पीटीआइ का एक बड़ा धड़ा इस बात से नाराज है कि वहां के पंजाब सूबे को लेकर इमरान सरकार ने कई गलत फैसले किए। आर्थिक बदहाली को लेकर भी सरकार निशाने पर है।
पाकिस्तान की 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली में सरकार बचाने के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। पीटीआइ के पास 155 सीटें हैं, जबकि 24 सीटें सहयोगी दलों की हैं। बताया जा रहा है कि पहले पीटीआइ के करीब 12 सदस्य अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट देने को तैयार थे, अब 50 मंत्रियों के 'लापता' होने के बाद सरकार का हिसाब-किताब और गड़बड़ा गया है। विपक्ष के पास करीब 162 सदस्यों का समर्थन है। अगर इमरान बागी सदस्यों को मनाने में नाकाम रहे, तो उनका खेल बिगडऩा तय है। पाकिस्तान में कोई प्रधानमंत्री अब तक पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। ताजा उथल-पुथल वहां लोकतंत्र की दशा-दिशा के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंताजनक है। अगर वहां सत्ता में सेना का दखल बढ़ता है, तो यह भारत के हित में नहीं होगा। सत्ता का कट्टरपंथियों के हाथ में जाना और भी खतरनाक साबित हो सकता है।