वह बाद में चाणक्य नाम से मगध साम्राज्य का प्रधानमंत्री बना। तक्षशिला का स्नातक क्या नहीं था- अर्थशास्त्री था, शिक्षा शास्त्री था, राजनीतिज्ञ था, समाज शास्त्री था, कानूनविद् था, गुप्तचर विभाग का अध्यक्ष था, सेनानायक था। एक युद्ध में तो उसने चन्द्रगुप्त को राजधानी से निकलने ही नहीं दिया और खुद युद्धक्षेत्र में जाकर सैन्य संचालन किया।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज के विश्वविद्यालयों से ऎसे स्नातक निकल सकते हंैं। असंभव, घोर असंभव। क्यों नहीं निकल सकते? इसलिए कि आजकल के शिक्षक और मां-बाप अपने लाड़लों को बचपन से ही रट्टू तोते बनाने में जुट जाते हैं। यह बात हम नहीं कह रहे लेकिन जरा इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बात को काट कर दिखाइए। मूर्ति साहब ने सोलह आना सच कहा है कि आजकल “आईआईटी” जैसे ब्ा्रान्ड की प्रतिष्ठा धूल में मिल रही है क्योंकि वहां रट्टू तोते ज्यादा आ रहे हैं।
पैसे वाला बाप अपने बेटे को कोचिंग संस्थानों के दड़बों में डाल देता है। वहां उसे एक हजार प्रश्न रटवा दिए जाते हैं और उन्हीं के दम पर वह पास हो जाता है यानी उसका भेजा सिमट जाता है और वह अपनी बुद्धि इस्तेमाल करना भूल जाता है। आज जरा ध्यान से देखिए तो यही “तोते” प्रशासन और बड़े-बड़े संस्थान चला रहे हैं। देश का हाल तो क्या होता जा रहा है यह तो आप ज्यादा जानते हैं।
ऎसे में भजनू समोसे वाला याद आ रहा है। वह दिन में हजार समोसे बेचता था। उसने जैसे-तैसे बेटे को एमबीए कराया। बेटा वहां रट्टू तोता बन गया। वापस आकर वह भी दुकान पर बैठने लगा। एक दिन उसने अखबार में पढ़ा कि मंदी आने वाली है। उसने बाप को सलाह दी कि समोसे कम बनाना शुरू कर दें जिससे नुकसान न हो।
धीरे-धीरे ज्यादा कमाई के चक्कर में बेटे ने समोसे की साइज, मसालों में भी कमी कर दी। वह बासी आलू को दोबारा इस्तेमाल करने लगा। कुछ दिन बाद समोसे की क्वालिटी गिरने पर लोगों ने समोसे खरीदना कम कर दिए। एमबीए बेटे ने बाप से कहा- देखो बापू मैंने कहा था न मंदी आने वाली है।
भजनू ने बेटे के दो जूत लगाए फिर बोला- अबे गधे! ये मंदी तेरी वजह से आई है और उसने उसे जूठी प्लेटें धोने के काम पर लगा दिया। तो साहब हम तो यही कहते हैं कि अपनी औलादों को तोता मत बनाओ। उन्हें सचमुच बुद्धिमान बनने दो। आपके बस की नहीं तो अपनी शागिर्दी में भेज दो। आप तो बस माल कूटो। – राही