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आत्मनिर्भरता की बुनियाद होगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था

locationनई दिल्लीPublished: May 13, 2020 01:00:55 pm

Submitted by:

Prashant Jha

वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत, दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम प्रभावित हुआ था। इसका प्रमुख कारण देश के ग्रामीण बाजार की जोरदार शक्ति भी माना गया था। अब कोविड-19 के बीच भी एक बार फिर भारत के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहमियत दिखाई दे रही है।

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डॉ. जयंतीलाल भंडारी, आर्थिक मामलों के जानकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के संकट से चरमराती देश की अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की अहम कड़ी के तौर पर बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। कहा गया है कि वित्त मंत्रालय के पिछले पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक के कदमों को जोड़ दें तो कुल पैकेज 20 लाख करोड़ रुपये का होगा, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10 फीसदी के बराबर होगा। नए आर्थिक पैकेज में ग्रामीण भारत, कुटीर उद्योगों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों, किसानों और मध्यम वर्ग सहित सभी वर्गों पर खास ध्यान केंद्रित किया जाना है। पीएम ने अपने सम्बोधन में बताया कि इस पैकेज देश के लिए आत्मनिर्भरता के पांच स्तंभों को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें तेजी से छलांग लगाती अर्थव्यवस्था, आधुनिक भारत की पहचान बनता बुनियादी ढांचा, नए जमाने की तकनीक केंद्रित व्यवस्थाओं पर चलता तंत्र, देश की ताकत बन रही आबादी और मांग एवं आपूर्ति चक्र को मजबूत बनाना शामिल है। निसंदेह प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित नया पैकेज न केवल अर्थव्यवस्था को गतिशील करेगा, वरन् देश को आत्मनिर्भरता की नई डगर पर भी आगे बढ़ाता हुआ दिखाई देगा।

ऐसे में देश की आत्मनिर्भरता में ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दिखाई देगी। इन दिनों प्रकाशित हो रही वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों में भी यह बात उभरकर सामने आ रही है कि कोविड-19 से भारत की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सबसे कम असर गिरेगा और कोविड-19 के बाद कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से भारत की आत्मनिर्भरता तेजी से बढ़ेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि यद्यपि कोरोना वायरस की चुनौतियों के कारण भारत की विकास दर में तेज गिरावट आएगी। लेकिन प्रचुर खाद्यान्न भंडार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत के लिए सहारा होंगे और इन आधारों से भारत कोविड-19 के बाद तेजी से आगे बढ़ सकेगा। एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के पास कृषि और खाद्यान्न जैसे मजबूत आर्थिक बुनियादी घटक है जिनकी ताकत से भारत अगले वित्त वर्ष 2021-22 में जोरदार आर्थिक वृद्धि करते हुए दिखाई दे सकेगा।

गौरतलब है कि 2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम प्रभावित हुआ था। इसका प्रमुख कारण देश के ग्रामीण बाजार की जोरदार शक्ति भी माना गया था। अब कोविड-19 के बीच भी एक बार फिर भारत के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहमियत दिखाई दे रही है। कोविड-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए जहाँ शहरी भारत का एक बड़ा हिस्सा लॉकडाउन में रहा है, वहीं ग्रामीण भारत के अधिकांश क्षेत्र को शीघ्रतापूर्वक लॉकडाउन से बाहर लाया गया और इस समय ग्रामीण भारत अर्थव्यवस्था की गाड़ी को खींचता हुआ दिखाई दे रहा है।

यद्यपि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान करीब 17 फीसदी है। लेकिन देश के 60 फीसदी लोग खेती पर आश्रित है और वे बहुत कुछ आत्मनिर्भर जीवन जीते है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है और शेष 50 फीसदी में ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत छोटे-मझोले उद्योग और सेवा क्षेत्र का योगदान है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस समय कोविड-19 के बीच भारत का सबसे मजबूत पक्ष यह है कि देश के सामने 135 करोड़ लोगों की भोजन संबंधी चिंता नहीं है। नवीनतम स्थिति के अनुसार अप्रैल 2020 के अंत तक देश के पास करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार सुनिश्चित हो गया है। जिससे करीब डेढ़ वर्ष तक देश के लोगों की खाद्यान्न जरूरतों को सरलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है।

इतना ही नहीं कृषि मंत्रालय के द्वारा प्रस्तुत किए फसल वर्ष 2019-20 के दूसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े सुकून भरा संकेत दे रहे हैं कि देश में खाद्यान्न उत्पादन 29.19 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों के 3.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की बात कहीं गई है| यह भी बताया गया है कि आगामी फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्नों का उत्पादन लक्ष्य 29.83 करोड़ टन रखा गया है। देश में पहली बार इतना बड़ा खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य रखा गया है। निसंदेह भारतीय मौसम विज्ञान की अच्छे मानसून की यह संभावना न केवल देश के कृषि जगत के लिए अपितु पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है।

उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन में सरकार के प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सराहनीय सक्रियता दिखाई दे रही है। सरकार ने किसानों को उनकी उपज मंडियों के अलावा सीधे भी बेचने की इजाजत दी है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, पशुपालन और डेयरी उत्पादन को विशेष अहमियत दी गई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के सबसे बड़े स्त्रोत मनरेगा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इसके तहत जल संरक्षण और सिंचाई कार्यों को प्राथमिकता दी गई है। साथ ही अधिक लोगों को रोजगार मिल सके इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा सिंचाई और जल संरक्षण योजनाओं को भी मनरेगा से जोड़ दिया गया है।

इन सबके कारण देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विकास करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। लॉकडाउन के बीच शीघ्रतापूर्वक खेती और ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी हुई गतिविधियों को शुरू किए जाने से उर्वरक, बीज, कृषि रसायन जैसे कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई कंपनियां और ट्रैक्टर निर्माताओं को इसका बड़ा फायदा मिल रहा हैं। कृषि गतिविधियों में दी गई राहत से उपभोग की मांग बढ़ गई है। ऐसे में अब ग्रामीण भारत सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को गतिशील करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहा है।

अच्छे मूल्यों पर फसल खरीदे जाने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो मजदूर वापस अपने गांव आए हैं, वे अब जल्दी शहर जाने वाले नहीं हैं। वे कम से कम आगामी तीन-चार महीनों तक गांव में ही रहेंगे और कृषि कार्य करेंगे। इससे खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की मांग बढ़ेगी। इसी तरह सरकार के द्वारा लोगों के जनधन खाते में नकद पैसा डालने जैसे प्रयासों से ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ेगी और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

निसंदेह कोविड-19 में कृषि सुधारों का भी एक अवसर छिपा हुआ दिखाई दे रहा है। कोरोना वायरस के फैलने के कारण देश में खेती करने के परंपरागत तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। फसलों की बुआई, कटाई और भंडारण के तरीकों में जो परिवर्तन आया है, उसके कारण किसानों के द्वारा खेत तैयार करने, खेत में बुआई और फसल कटाई के काम में मशीनों का अधिक प्रयोग, सरकार के द्वारा गोदामों एवं शीतगृहों को बाजार का दर्जा दिया जाना, निजी मंडियां खोलने को प्रोत्साहनदायक अनुमति, कृषक उत्पादक संगठनों को मंडी की सीमा के बाहर लेन-देन की अनुमति, श्रम बचाने वाले उपकरणों के कारण कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण, फसल विविधीकरण जैसे जो कृषि सुधार दिखाई दे रहे हैं, यदि वे कोविड-19 के बाद भी मुठ्ठियों में बने रहेंगे, तो देश का कृषि क्षेत्र लाभप्रद दिखाई देगा। लेकिन कोविड-19 की चुनौतियों के बीच इस समय हमें ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजूबत बनाने के लिए कई बातों पर विशेष ध्यान देना होगा।

बाजार में आ रही रबी की फसल के मार्केटिंग के लिए मौजूदा मंडी खरीद प्रणाली से आगे बढ़कर सभी मार्केटिंग चैनल खोलने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, ताकि सीधे किसान से खरीद भी हो सके। गाँवों में मनरेगा को पूरी तरह कारगार ढंग से लागू किया जाए। साथ ही मजदूरी के लंबित भुगतान एवं काम मांगने पर काम दिलाने जैसी समस्याओं का भी समाधान निकाला जाए। ग्राम पंचायतों एवं सामुदायिक संगठनों के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई की अहमियत के बारे में स्पष्ट संदेश लगातार प्रसारित किए जाएँ ताकि ग्रामीण इलाकों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि किसानों के समक्ष खरीफ सीजन आने के पहले कृषि उत्पादन के लिए जरूरी सामान खरीदने के लिए नकदी का संकट नहीं आए। साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमों को सरल ऋण मिलना भी सुनिश्चित किया जाना होगा।

हम उम्मीद करें कि कोविड-19 के संकट से देश को उबारने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपए का व्यापक आर्थिक पैकेज न केवल देश की अर्थव्यवस्था को चरमराने से बचाएगा, वरन ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देकर देश को आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ाएगा । हम उम्मीद करें कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच नया आर्थिक पैकेज भारत में ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग, बेहतर कृषि, प्रचुर खाद्यान्न उत्पादन, पशुपालन, डेयरी उत्पादन तथा खाद्य प्रसंस्करण जैसे खाद्य पदार्थों पर आधारित ग्रामीण उद्योगों को नया प्रोत्साहन देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा। ऐसे में मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद बनते हुए दिखाई दे सकेगी।

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