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हकीकत यही है, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा…

Published: Aug 09, 2022 06:54:48 pm

Submitted by:

Patrika Desk

कोई भी विदेश यात्रा बेशुमार अनुभव देती है। हाल ही लंदन और स्कॉटलैंड की यात्रा ने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा…। समग्र विकास, स्वतंत्रता और पारदर्शिता के साथ जमाने की रफ्तार से चलने की बात करें, तो भारत किसी से कम नहीं है। इंसानियत से लेकर पुरा महत्त्व तो सद्भाव से लेकर रंग-बिरंगी संस्कृति तक, भारत सर्वोत्तम है। अनेक भ्रांतियां तोडऩे वाली यह यात्रा सुकून भरी रही।

हकीकत यही है, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा...

हकीकत यही है, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा…

डॉ. ईश मुंजाल
लेखक और
चिकित्सक

कोई भी विदेश यात्रा बेशुमार अनुभव देती है। पर्यटन के रोमांच के बीच उन हकीकतों से रूबरू कराती है, जो हमारी कल्पना से कोसों दूर हंै। यह भी बता देती है कि आधुनिकता की भागमभाग के बीच हमारा देश किस स्थिति में है। हाल ही लंदन और स्कॉटलैंड की यात्रा ने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा…। समग्र विकास, स्वतंत्रता और पारदर्शिता के साथ जमाने की रफ्तार से चलने की बात करें, तो भारत किसी से कम नहीं है। इंसानियत से लेकर पुरा महत्त्व तो सद्भाव से लेकर रंग-बिरंगी संस्कृति तक, भारत सर्वोत्तम है। अनेक भ्रांतियां तोडऩे वाली यह यात्रा सुकून भरी रही। कुछ बेहतरीन करने की कोशिश का संदेश मिला, तो इस पर गर्व भी हुआ कि आबादी में दुनिया के दूसरे बड़े मुल्क में न इतनी बेचारगी है, न ही ऐसी बेरुखी। दस दिन की इस यात्रा ने पग-पग पर झिलमिलाती रंग-बिरंगी रोशनी के बीच कहीं-कहीं अंधेरे का भी अहसास कराया।
शाही शहर लंदन अपने ऐतिहासिक, आधुनिक, धार्मिक महत्त्व, चहल-पहल और चुहल के कारण दुनियाभर में पहचाना जाता है। यहां के पैलेस राजवंश का गौरव दिखाते हैं। लम्बा दिन और छोटी रात, यानी घूमने-फिरने का पूरा समय। सुबह चार बजे सूरज का उगना और अस्त होते-होते रात के ग्यारह बजा देना। हालांकि सरकारी दफ्तर हो या पर्यटन स्थल, समय तय है। इसके बाद भी भागता ट्रैफिक, बतियाते लोगों का झुण्ड सदैव एक-सा बना रहता है। शुरुआत घूमने से हुई, तो यह देखकर हैरान हो गए कि यहां टीवी देखने के लिए अब भी एंटीना लगा हुआ है। अजीब-सा लगा यह जानकर भी कि वहां टीवी के लिए भी लाइसेंस बनवाना पड़ता है। ऐसे में यह मिथक भी टूट गया कि बाहरी देशों की तुलना में हम पीछे हैं। इस लिहाज से ये हिंदुस्तान से पीछे लगा। साथ गई पत्नी के लिए दवा की एक गोली की जरूरत ने यहां के चिकित्सा इंतजाम की पोल खोल दी। हार्ट पेशेंट होने के नाते गोली जरूरी थी। तमाम प्रयासों के बाद भी गोली की व्यवस्था नहीं हो पाई। इमरजेंसी सेवा भी सुस्त पाई।
लंदन शहर कई मायनों में खूबसूरत और सलीकेदार भी दिखा। सेंट्रल लंदन की तंग गलियां, पर लोगों का ट्रैफिक सेंस ऐसा कि डबल-डेकर बस तक व्यवस्थित ढंग से संचालित होती है। मानव रहित पार्किंग के साथ, पैदल चलने वालों को प्राथमिकता तो देखने को मिली ही, साइकिल और स्केटिंग के लिए बनी अलग लाइन ने भी मन मोह लिया। अनुशासित और सफाई पसंद होना यहां की खास बात दिखी। शाम होते ही बीयर पीना यहां का ट्रेंड दिखा, पर साथ में वे सिर्फ हिन्दुस्तानी पापड़ ही खाते हैं। अखबार यहां नि:शुल्क ही मिलते दिखे। लंदन में जन-जीवन की चहल-पहल यहां की दुकानों, ट्रेन-बसों और नाइट क्लबों में देखने को मिलती है। ट्रेन जितनी लंबी, उतनी उसकी स्पीड। राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल, हर चीज को संजोकर रखने की शैली भी अद्भुत लगी। एसटीडी-पीसीओ बूथ खत्म हुए भले ही जमाना हो गया, पर लंदन की सड़कों पर ये बूथ स्मारक की मानिंद नजर आते हैं। विंडसर कैसल, हाइड पार्क, बकिंघम पैलेस, टावर ब्रिज के साथ लाड्र्स मैदान भी देखा। स्कॉटलैंड में पहाड़ के साथ झीलें, स्कॉच की डिस्टलरी, बैगपाइपर बजाने वालों के साथ लंदन से ज्यादा ठंड महसूस हुई।

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