बच्चे स्कूल में अन्य बच्चों के संपर्क में आने से जीवन के महत्त्वपूर्ण आयाम – मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक पहलुओं के बारे में सीखते और समझते हैं, जो ऑनलाइन पढ़ाई से संभव नहीं हैं। दूसरी बात, ऑनलाइन पढ़ाई सिर्फ ऐसे कुछ बच्चों के लिए उपयोगी होती है, जिनके परिवार में कोई व्यक्ति उन्हें पढ़ाए। इसलिए, गरीब और निचले तबके के बच्चों का अत्यधिक नुकसान हो रहा है, क्योंकि उनके पास न तो इंटरनेट वाला फोन है, न परिवार में कोई पढ़ाने वाला। ऐसे कई बच्चों के लिए स्कूल मध्याह्न भोजन की जगह भी है और ऐसा न हो पाने पर बच्चों की शिक्षा के साथ पोषण का भी नुकसान हो रहा है।
जब महामारी की शुरुआत में स्कूल बंद किए गए थे, तो वायरस के बारे में हमारी समझ कम थी। उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि बच्चों को कोविड -19 का खतरा नगण्य है। साक्ष्य हैं कि स्कूल खोलने के लिए बच्चों का टीकाकरण होना जरूरी नहीं है। कुछ अध्ययन आए हैं, जो बताते हैं कि बच्चों को कोरोना से गंभीर बीमारी होने की आशंका, मौसमी फ्लू की बीमारी से भी आधी है। कई सेरो-सर्वे दर्शाते हैं कि बच्चों में पहले ही एंटीबॉडी बन चुके हैं। साथ ही कई शहरी इलाकों और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे एक-दूसरे से मिलते हैं और साथ खेलते हैं, लेकिन स्कूल बंद हैं। अब समय आ गया है कि देश में स्कूल खोलने के विषय पर विचार किया जाए और सभी जरूरी कदम उठाए जाएं। इसके लिए राज्य सरकारों, शिक्षा और स्वास्थ्य विशषज्ञों और अभिभावकों को अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी।
अभिभावकों की चिंता समझ आती है, लेकिन उन्हें आश्वस्त होने की जरूरत है कि सरकार और विशेषज्ञ मिलकर सभी बच्चों के हित में सही फैसले लेंगे। साथ ही, भले ही स्कूल खुल जाएं, अंतिम निर्णय माता-पिता का होना चाहिए कि क्या वे अपने बच्चे को स्कूल भेजकर पढ़ाना चाहते हैं या ऑनलाइन।