पानी के बिना इन शौचालयों की साफ-सफाई नहीं होगी। ये अनुपयोगी रह जाएंगे और जनता एक बार फिर खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर होगी। देखा जाए तो हमें वर्षा जल व बाढ़ के पानी की संग्रहण इकाइयों की भी आवश्यकता है, जिनके पानी का इस्तेमाल शौचालय की सफाई के लिए किया जा सके। देश के उन इलाकों में शुष्क शौचालयों के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, जहां पानी की कमी है। बारिश का पानी तो आसानी से हर एक कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बस इसके लिए संग्रहण इकाइयों की आवश्यकता है। एक बात तो तय है कि पिछले सालों में वर्षा जल संरक्षण के प्रयासों को वांछित सफलता मिली ही नहीं।
पहली समस्या तो इसकी आपूर्ति की ही है। देश के अधिकांश इलाकों में इतना भी वर्षा जल नहीं आया कि भूमिगत जल स्तर बना रहे। दूसरा, जो पानी उपलब्ध है वह पानी साफ नहीं है। सर्वविदित है कि दूषित पानी ज्यादातर जलजनित बीमारियों का कारण बनता है। जनता के पैसे से बनाई गई एटीएम जैसी मशीनें जिनमें तीन रुपए में एक बोतल आरओ पानी भरा जा सकता है, वे अधिकतर खराब ही रहती हैं। इन मशीनों को लगाने पर इतना पैसा खर्च करने के बाद भी हालात चिंताजनक है।
ज्यादातर सूखा व अकाल की परिस्थितियां मानव निर्मित ही हैं। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, जल संसाधनों के साथ छेड़छाड़, शहरी प्रदूषण और कमजोर आधारभूत ढांचा देश भर में पानी की कमी के लिए जिम्मेदार है। जहां बड़ी कंपनियां सीधे हिमालय से बर्फ पिघलाकर साफ-सुथरा पानी लाने का दावा कर रही हैं, वहीं लोगों को पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं है। जल संकट से निपटने के लिए सबसे बड़ी जरूरत चौपट होती जा रही हरियाली को बचाने की है। इसके लिए हमें सघन वनीकरण पर काम करना होगा।