scriptसागर में ड्रैगन की दादागिरी | Sea Dragon's bullying | Patrika News

सागर में ड्रैगन की दादागिरी

Published: Feb 17, 2016 10:46:00 pm

दक्षिण चीन सागर को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया है। इस पर न सिर्फ चीन
बल्कि ताइवान, मलेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई और फिलीपींस जैसे देश भी अपना हक
जताते रहे हैं

Opinion news,

Opinion news,

दक्षिण चीन सागर को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया है। इस पर न सिर्फ चीन बल्कि ताइवान, मलेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई और फिलीपींस जैसे देश भी अपना हक जताते रहे हैं। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अब दक्षिण चीन सागर में स्थित वूडी द्वीप में चीनी सेना की राडार प्रणाली और जमीन से आकाश में मार करने वाली आठ मिसाइलें तैनात कर दी है।

वूडी द्वीप पर ताइवान और वियतनाम ने भी अपना दावा कर रखा है। लेकिन चीन का मानना है कि कोई भी बाहरी देश दक्षिण चीन सागर के जलक्षेत्र में बिना उसकी इजाजत के कदम नहीं रख सकता। उधर अमरीका का मानना है कि इस जलमार्ग से कोई भी देश आवाजाही कर सकता है। क्यों उठ रहा है दक्षिण चीन सागर में विवाद? अमरीका व भारत की चिंता के क्या हैं कारण? कैसे हो सकता है इस मसले का समाधान? इन बिन्दुओं पर विशेषज्ञों की राय आज के स्पॉट लाइट में…

यह विश्व समुदाय को चुनौती है

प्रो. पुष्पेश पंत विदेश मामलों के जानकार
दक्षिण चीन सागर में जिन चीनी मिसाइलों की तैनातगी की बात सामने आ रही है उससे चीन ने एक तीर से दो नहीं बल्कि तीन-चार शिकार किए हैं। पहले तो उसने दक्षिण चीन सागर में अपने प्रभुत्व की चुनौती विश्व समुदाय के सामने पेश कर दी हैं। भारत के लिए भी एक तरह से यह चेतावनी है कि वियतनाम के साथ तेल शोधन के उसके प्रयास चीन को मंजूर नहीं है। जापान के लिए तो यह बड़ी चुनौती है ही।

हम याद करें कि चीन ने दक्षिण चीन सागर से जापान की उड़ाने बंद कर दी थी। मिसाइल का प्रयोग किस रूप में होगा यह तो तत्काल नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि चीन के पास यह बहानेबाजी करने का मौका होगा कि अमुक देश के जहाज को पहचाना नहीं इसलिए मिसाइल दाग दी। गौर करें तो चीन का विवाद वियतनाम और फिलिपींस के साथ ज्यादा है। जापान भले ही अमरीका से मदद की उम्मीद करे लेकिन उसको यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अमरीका ऐसे मामलों में अपने हितों की चिंता छोड़कर उसकी मदद करने वाला नहीं।

चीन, दक्षिण चीन सागर में 12 समुद्री मील इलाके पर हक जताता है। चीन के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देश (ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया) भी इस इलाके पर अपना दावा जताते हैं। चिंताजनक बात यह है कि चीन किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को मानता ही नहीं। चीन और इससे पहले उत्तरी कोरिया का मिसाइल विवाद। मोटे तौर पर शक्ति प्रदर्शन का यह खेल तू डाल-डाल मैं पात-पात की तर्ज पर इसलिए हो रहा है ताकि दुनिया के दूसरे देश प्रतिक्रिया दें। भारत, यदि चीन की इस कार्रवाई पर चुप रहता है तो उसे चीन के सामने बौना ही माना जाएगा। भारत को तो यही करना चाहिए कि इसके बावजूद वह चीनी धौंस के आगे झुकने वाला नहीं है और वियतनाम से तेल शोध के समझौते पर अडिग रहेगा।

आर्थिक मोर्चे पर जवाब
अमरीका ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने पर मुहर लगाई तो हम ने अमरीकी राजदूत को बुलाकर ऐतराज जताया। तो फिर चीन के राजदूत को भी बुलाकर कहें कि वह गलत कर रहा है? हम एक साथ कितने देशों से बिगाड़ करेंगे? विवाद को जगजाहिर करने से बेहतर है कि हम अपनी तरह से तैयारी करें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन पिछले सालों में हमारा बड़ा व्यापारिक साझेदार बना है। सामरिक दृष्टि से भी हमें पाकिस्तान से इतना खतरा नहीं जितना चीन से हो सकता है। चीन को जवाब उसके साथ व्यापारिक रिश्तों में कमी लाकर ही दिया जा सकता है। इसके लिए सैनिक तैयारियों की मजबूती भी जरूरी है। जिन-जिन क्षेत्रों में हमारे चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते बने हुए हैं वहां भी आत्मनिर्भरता का दौर शुरू करना होगा। चीन को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करके ही हम उसे सामरिक मोर्चे पर भी जवाब देने में सक्षम होंगे।

वूडी द्वीप की स्थिति
1956 में चीन ने इस द्वीप पर स्थायी जगह बना ली
012 में समूचे दक्षिण चीन सागर पर नजर रखने और प्रशासन के लिए यहां एक स्थानीय सरकारी दफ्तर बनाया। यहां एक अस्पताल, लाइब्रेरी, एयरपोर्ट, स्कूल और मोबाइल फोन कवरेज बना ली
इस द्वीप पर चीन, ताइवान और विएतनाम द्वारा दावा किया जाता रहा है

200 किमी. मारक क्षमता
इस घटना से बाकी देशों में, जो इस क्षेत्र पर दावा जताते आए हैं, जबरदस्त नाराजगी है। उन्होंने चीन द्वारा बढ़ते सैन्यकरण पर चिंता जताई है। यूएस डिफेंस अधिकारियों ने इन मिसाइलों को एचक्यू-9 एयर डिफेंस मिसाइल बताया है, जिनकी मारक क्षमता 200 किमी. है।

पूरे क्षेत्र पर डै्रगन का दावा
दक्षिण चीन सागर में सीमा विवाद सदियों पुराना है पर बीते कुछ बरसों में यह ज्यादा तूल पकडऩे लगा है। यहां स्थित टापूओं और जल क्षेत्र पर ताइवान, चीन, वियतनाम, फिलिपींस, मलेशिया और बू्रनेई दावा जताते रहे हैं। इन प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच विवाद समुद्री क्षेत्र पर अधिकार और संप्रभुता को लेकर है। इसमें पारासेल और स्प्रैटली आइलैंड शामिल हैं। स्प्रैटली आइलैंड 750 चट्टानों, टापुओं, प्रवालद्वीप का समूह है जबकि पैरासेल ऐसे 130 टापुओं का समूह है। पारासेल और स्प्रैटली द्वीप पर कई देशों ने अपना पूरा अधिकार बताया है तथा कई देशों ने आंशिक रूप से इसे अपने नियंत्रण क्षेत्र का हिस्सा बताया है।

तेल की है लड़ाई!
दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस के विभिन्न भंडार दबे हुए हैं। अमरीका के मुताबिक यहां 213 अरब बैरल तेल मौजूद है। साथ ही 900 ट्रिलियन क्यूबिक फीट नेचुरल गैस का भंडार है। इस समुद्री रास्ते से हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का बिजनेस होता है।

कानून का उल्लंघन?
अंतरराष्ट्रीय समुद्र कानून देशों को उनकी समुद्री सीमा से 12 समुद्री मील तक के क्षेत्र में अधिकार देता है। उसके बाहर का जल क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा माना जाता है। कोई भी देश इस सीमा के बाहर किसी क्षेत्र पर दावा नहीं कर सकता।

पुराना है व्यापार मार्ग
अमरीका इस मामले में चीन की खुली आलोचना करता है। उसका कहना है कि कई देशों के पास ऐसे मानचित्र हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछले कई सौ बरसों से भारत, अरब और मलय के व्यापारी दक्षिण चीन सागर में समुद्री जहाजों को ले जाते थे ।

अमरीका ने चेताया
बराक ओबामा ने आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में कहा कि दक्षिण चीन सागर में तनाव कम करने के लिए ठोस कदम की जरूरत है। चेताया कि अमरीका उन सभी क्षेत्रों में उड़ान भरेगा, नौकाएं चलाएगा और संचालन करेगा जहां भी अंतरराष्ट्रीय कानून अनुमति देता है।

सैटेलाइट तस्वीरों में कैद हुई मिसाइलें
फरवरी को ली गई सैटेलाइट तस्वीरों में दक्षिण चीन सागर में पारासेल द्वीप समूहों में सबसे बड़े द्वीप वूडी अथवा योंगझिंग द्वीप पर आठ मिसाइल लॉन्चर्स की दो बैटरियां और एक रडार सिस्टम कैद हआ है। ताइवान, जो इस द्वीप पर दावा करता रहा है, ने भी इसे पुष्ट किया है। लेकिन हर बार की तरह चीनी विदेश मंत्री ने इसे पश्चिमी मीडिया की उपज बताया है। चीन यहां जमीन पर प्रभुता हासिल करने के लिए कई गतिविधियां करता रहा है, जिसे वह जायज भी ठहरता आया है।

महज दावा, युद्ध की चेतावनी नहीं
स्वर्ण सिंह जेएनयू, हिरोशिमा वि.वि. में विजिटिंग प्रोफेसर
अमरीका और ताइवान से इस आशय की खबरें आ रही हैं कि चीन ने दक्षिण चीन सागर के वूडी द्वीप पर एचक्यू-9 मिसाइलों की आठ बैटरियों वाले दो बेड़े तैनात किए हैं। सेटेलाइट तस्वीरें भी इस आशय की गवाही दे रही हैं। इस द्वीप के आसपास के क्षेत्र के सभी देश इसे अपनी संप्रभुता के लिए खतरा मान रहे हैं।

चीनी दावे और चुनौतियां
संयुक्त राष्ट्र के कानून के मुताबिक द्वीप वही कहलाएंगे जो प्राकृतिक रूप से मौजूद हों और समुद्र में आने वाले ज्वार के समय भी ऊपर ही दिखाई दें। वहां मानव के रहने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसे टापू जो कृत्रिम रूप से निर्मित किए जाएंगे, उन्हें द्वीप के तौर पर नहीं माना जाएगा। उन पर किसी का भी अधिकार नहीं होगा। दक्षिण चीन सागर में छोटे-छोटे टापुओं के समूह हैं जिनमें से अधिकतर द्वीप की श्रेणी में नहीं आते। लेकिन, चीन इन पर कृत्रिम निर्माण करके, इन पर अपना कब्जा बताता रहा है। उधर, अमेरिका दक्षिण चीन सागर को स्वतंत्र जलमार्ग के तौर पर देखता है और जब-तब इस क्षेत्र में चीन के अधिकार को चुनौती भी देता है। पिछले छह महीनों के दौरान अमरीका ने इस क्षेत्र से अपने विमान इस क्षेत्र से गुजारे और चीन ने इस पर आपत्ति के साथ चेतावनी भी दी।

द.चीन सागर की महत्ता
दक्षिण चीन सागर के समूचे क्षेत्र के उत्तर की ओर तो चीन का दबदबा है लेकिन दक्षिण की ओर बहुत से द्वीपों को लेकर भी वह अपना कब्जा जताता रहा है। इस पर फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, जापान, ब्रुनेई आदि देशों को ऐतराज होता रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी भी द्वीप से 12 नॉटिकल मील तक की दूरी तक के क्षेत्र पर उस देश का अधिकार माना जाता है, जिसका उस द्वीप पर अधिकार होता है। इसके बाद 250 नॉटिकल मील की दूर तक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी बनाया जा सकता है।

इस सामुद्रिक सीमा में प्रवेश से पूर्व किसी भी देश के जहाज को पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है। चीन की कोशिश रहती है कि इस कानून का सहारा लेकर वह आसपास के टापुओं पर अपना अधिकार बताए और अपनी सीमा बढ़ा ले। इसके लिए ऐसे टापू जिन्हें द्वीप नहीं माना जाता, उन पर कृत्रिम निर्माण करके, चीन अपना अधिकार जताने की कोशिश में लगा है। चूंकि दुनिया में भार ढुलाई के लिहाज से बात करें तो 95 फीसदी व्यापार समुद्री मार्ग से ही होता है।

इसमें से करीब 50 फीसदी व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से ही होता है। ऐसे में चीन की सोच यही है कि यदि बहुत बड़ी समुद्री सीमा पर उसका कब्जा होगा तो उसे व्यापार में आसानी होगी और अन्य देश उसकी अनुमति से ही व्यापार के लिए इस जलमार्ग का इस्तेमाल कर पाएंगे। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में प्रचुर मात्रा में तेल और गैस के भंडार हैं। चीन इन पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता है। इसीलिए वह टापुओं पर निर्माण के लिए वैज्ञानिक शोध का कारण भी बताता है। इसके लिए वह शांति और सुरक्षा की बात भी करता है।

मिसाइल तैनातगी क्यों
दक्षिण चीन सागर में जो छोटे-छोटे टापुओं के समूह हैं, उसी में है वूडी द्वीप। इस क्षेत्र में चीन को सबसे अधिक खतरा वियतनाम से है। दावे कुछ भी हों लेकिन दुनिया मानती कि 1979 के युद्ध में चीन वियतनाम से हार गया था। वियतनाम ने हाल ही में रूस से आठ पनडुब्बियां का सौदा किया हैं। पांचवी पनडुब्बी तो 2 फरवरी को ही वियतनाम पहुंची है। इसी तरह ओरिंक्स मिसाइल के लिए के-300 पोर्टेबल बैटरी की खरीद भी वियतनाम ने की है।

वह सुखोई-30 भी खरीदने जा रहा है। इस परिस्थिति में समझा जा सकता है कि चीन ने एचक्यू-9 मिसाइल बैटरियों की तैनातगी की है। चूंकि ये बैलेस्टिक मिसाइल लांच करने वाली बैटरियां नहीं हैं इसलिए हो सकता है कि वह यह भी देखना चाहता हो कि यदि इस तरह की बैटरियों की तैनातगी से फिलहाल किसी को आपत्ति नहीं होगी तो फिर कभी भी बैलेस्टिक मिसाइल लांच करने में परेशानी नहीं आएगी। यही ङ्क्षचता अमरीका और आसियान क्षेत्र के देशों को सता रही है। फिलहाल, इनकी तैनाती सांकेतिक है और यह महज दावा जताने जैसा ही है।

यह युद्ध की चेतावनी नहीं है। यद्यपि एचक्यू-9 मिसाइल बैटरियां जमीन से ऊपर हवा में मार करने के लिए हैं लेकिन इनकी मारक क्षमता 200 किलोमीटर से अधिक दूरी की नहीं है। इससे जापान, फिलीपींस, ब्रुनेई या अन्य पड़ोसी देशों को कोई खतरा नहीं है। लेकिन, सान काकू द्वीप के नजदीक होने से जापान इसे अपने लिए खतरा मानता है। यह बात जरूर है कि चीन ने युद्ध सामग्री वाहक एयरक्राफ्ट 2010 में लांच किया था जो दक्षिण चीन सागर में घूमता जरूर रहता है। इस आधार पर खतरे से इनकार भी नहीं किया जा सकता।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो