समूची घाटी में आतंक की ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहने के पीछे आतंकियों का यही मकसद झलकता है कि वहां ऐसे माहौल को देखकर सरकार खुद ही चुनाव प्रक्रिया को स्थगित कर दे। यह कोई पहली बार नहीं है जब कश्मीर में चुनावों को बाधित करने की कोशिशें की गई हैं। हमने पहले भी देखा है कि जम्मू-कश्मीर में चुनावों के जरिए सरकार गठन की प्रकिया जब भी शुरू होने की चर्चा होती, आतंकी अपने नापाक मंसूबों में जुट जाते थे। कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को सीमा पार से भरपूर मदद मिल रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। अलगाववादी नेता मोहम्मद यासीन मलिक को उम्र कैद की सजा को लेकर अनर्गल बयानबाजी करने वाले पाकिस्तान के सत्ताधीशों को यह कतई रास नहीं आ रहा कि कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो। परिसीमन प्रक्रिया को लेकर पाकिस्तान की तरफ से जो प्रतिक्रिया पिछले दिनों आई, उससे भी पाकिस्तान के नापाक मंसूबे सामने आ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में हिंदूओं को लगातार निशाना बना रहे आतंकियों की करतूतों से घाटी में दहशत का माहौल है। कुलगाम में महिला शिक्षक की हत्या के बाद वहां कश्मीरी पंडितों में गुस्सा फिर उबाल पर है। वे कश्मीरी पंडितों को घाटी से शिफ्ट करने और सुरक्षा देने की मांग के साथ सड़कों पर उतर रहे हैं।
यह सही है कि कश्मीर में टारगेट किलिंग करने वालों को भारतीय सेना व सुरक्षा बल त्वरित कार्रवाई कर निशाना बना रहे हैं। पर बड़ी चिंता यह है कि सीमा पार से मिली शह से स्थानीय युवा गुमराह होते जा रहे हैं। आम लोगों के बीच रहते हुए आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं क्योंकि इनकी धरपकड़ आसान नहीं होती। अमरनाथ यात्रा भी जून के अंत में शुरू होने वाली है। ऐसे में घाटी में सुरक्षा बंदोबस्त और सख्त किए जाने की जरूरत है ताकि आतंकी अपने नापाक मंसूबों में कामयाब न हो पाएं।