आत्म-दर्शन : पत्नी का अधिकार
- इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

इस्लाम ने पत्नी के रूप में महिला को खास स्थान दिया है। इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। पत्नी के रूप में इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। पैगम्बर मुहम्मद साहब (ईश्वर की रहमतें हों उन पर) ने कहा, 'तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है, जो अपनी पत्नी के लिए सबसे अच्छा है। मुहम्मद साहब ने कहा, 'नेक बीवी दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी है।
इस्लाम पति पर अपनी पत्नी की पूरी जरूरतें पूरी करने की जिम्मेदारी डालता है। यही नहीं अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को पुण्य का काम माना गया है। पैगम्बर मुहम्मद साहब (ईश्वर की रहमतें हों उन पर) ने फरमाया, 'तुम ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे, उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो।' पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कहा, 'आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है।' मुहम्मद साहब ने फरमाया, 'महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो।' बीवी को पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया।
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