मन का स्वभाव ऐसा ही है कि अगर आप कहते हैं, ‘मैं ये नहीं चाहता’, तो आपके मन में सिर्फ वही बात होगी। जब आप कहते हैं, ‘मैं कोई नकारात्मक चीज नहीं चाहता’, तो सिर्फ वही बात होगी। आप सकारात्मक या नकारात्मक के बारे में बोल ही क्यों रहे हैं? आप चीजों को इस तरह से क्यों देखना चाहते हैं? आप हर परिस्थिति को वैसे क्यों नहीं देखते जैसी वह है? उसे वैसे ही क्यों नहीं स्वीकारते जैसी वह है? और, उस परिस्थिति में जो सबसे अच्छा है, वह क्यों नहीं करते? कोई परिस्थिति सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती।
किसी तरह के रवैए या किसी खास दार्शनिकता को बढ़ाने की कोशिश न करें। आप यहां बिना किसी खास रवैए के, बिना किसी खास दार्शनिकता के, सिर्फ जागरूक होकर क्यों नहीं रह सकते? केवल जागरूक होकर। हर परिस्थिति को एक अलग प्रकार से संभालने की जरूरत होती है। सकारात्मक होने की कोई जरूरत नहीं है और नकारात्मक होने की भी कोई जरूरत नहीं है। बस जागरूक रहें।