भारत में हर सौ किलोमीटर की दूरी पर लोगों की भाषा-बोली, वेशभूषा, खान-पान सब-कुछ अलग होता है। तो फिर ऐसा क्या है जो हम सबको एक राष्ट्र के रूप में पिरोए हुए है? वास्तव में यह सांस्कृतिक आधार और आध्यात्मिक सोच ही है, जो हम सबको एक साथ जोड़े हुए है। पिछले कुछ दशकों से यह सांस्कृतिक ताना-बाना बुरी तरह से उधडऩे लगा है। अगर हम एक राष्ट्र के रूप में आगे तरक्की करना चाहते हैं, तो धर्म-मजहब, जात-पांत, भाषा-बोली अलग होने के बावजूद हम सबको एक सूत्र में पिरोने वाले सांस्कृतिक धागे को मजबूत करना ही होगा।