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आत्म-दर्शन : बांधती है संस्कृति

locationनई दिल्लीPublished: Aug 14, 2021 09:07:09 am

Submitted by:

Patrika Desk

राष्ट्र-निर्माण का अर्थ केवल पत्थर की इमारतों का निर्माण ही नहीं होता है। इसका अर्थ होता है जन-निर्माण।

आत्म-दर्शन : बांधती है संस्कृति

आत्म-दर्शन : बांधती है संस्कृति

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

आज सच्चाई, ईमानदारी और चरित्र के स्तर में इतनी जबरदस्त गिरावट इसलिए आई है, क्योंकि हमने कुछ खास बातों पर ध्यान नहीं दिया। लोगों के दिल और दिमाग में राष्ट्र की सोच अब तक गहराई तक नहीं उतर पाई है। हमने इसके लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है। राष्ट्र-निर्माण का अर्थ केवल पत्थर की इमारतों का निर्माण ही नहीं होता है। इसका अर्थ होता है जन-निर्माण। भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़े रखना आज एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि हम अब तक पूरे देश को एक सूत्र में नहीं पिरो पाए हैं। अगर हम सांस्कृतिक मूल्यों के जरिए देश में अखंडता की भावना विकसित नहीं कर पाए, तो बिखराव होगा।

भारत में हर सौ किलोमीटर की दूरी पर लोगों की भाषा-बोली, वेशभूषा, खान-पान सब-कुछ अलग होता है। तो फिर ऐसा क्या है जो हम सबको एक राष्ट्र के रूप में पिरोए हुए है? वास्तव में यह सांस्कृतिक आधार और आध्यात्मिक सोच ही है, जो हम सबको एक साथ जोड़े हुए है। पिछले कुछ दशकों से यह सांस्कृतिक ताना-बाना बुरी तरह से उधडऩे लगा है। अगर हम एक राष्ट्र के रूप में आगे तरक्की करना चाहते हैं, तो धर्म-मजहब, जात-पांत, भाषा-बोली अलग होने के बावजूद हम सबको एक सूत्र में पिरोने वाले सांस्कृतिक धागे को मजबूत करना ही होगा।

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