आर्थिक असमानता विशेषकर विकसित और विकासशील देशों के बीच दुख का सबसे बड़ा स्रोत है। संभव है कि प्रारंभ में उन्हें कुछ आर्थिक हानि उठानी पड़े, परन्तु बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निर्धन देशों का शोषण बंद करना चाहिए। उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने के लिए अनमोल संसाधनों का दोहन विनाशकारी है। इसे रोकना चाहिए।