ओपिनियन

आत्म-दर्शन : जीवन कैसे हो सार्थक

अपरिमित आनन्द, अपार शांति, असीम सुख और अद्भुत रस स्वयं में निहित हैं। इच्छाएं ही सभी कष्टों की जड़ हैं।

नई दिल्लीApr 27, 2021 / 07:49 am

विकास गुप्ता

आत्म-दर्शन : जीवन कैसे हो सार्थक

स्वामी अवधेशानंद गिरी

सद्गुण ग्राह्यता एवं सत्याचरण हमारा स्वभाव बनना चाहिए। जैसे मधुमक्खी प्रसून पराग-रस संग्रहित कर शहद बना लेती है, उसी प्रकार साधक को भी तत्परतापूर्वक साधन चतुष्टय से ज्ञान-विवेक, विचार आदि दिव्यताओं का संग्रहण सीखना चाहिए। अपने सच्चे, दिव्य स्वभाव को भूल जाना दुख की जड़ है। सार्थक जीवन के लिए ईश्वर का स्मरण करते हुए जीएं और स्वभाव में रहें। अपरिमित आनन्द, अपार शांति, असीम सुख और अद्भुत रस स्वयं में निहित हैं। इच्छाएं ही सभी कष्टों की जड़ हैं।

जिसकी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, उसके जीवन में चिंताओं का कहीं कोई स्थान नहीं रहता तथा उसका मन भी उल्लासपूर्ण हो जाता है। जो किसी इच्छा या आकांक्षा के बिना प्रभु का स्मरण करता है, उसे आत्म-साक्षात्कार का लाभ मिलता है। स्वभाव में रहना ही सच्ची आध्यात्मिकता है। जैसे ही मानवी चेतना अंतर्मुखी होती है, स्वयं में निहित परिपूर्णता, सनातनता और नित्यता का अनुभव सहज, प्रशान्त और आनन्द में परिवर्तित होने लगता है। अत: स्वाभाविक जीवन अभ्यासी बनें। अपने स्वभाव को प्रकृति के अनुकूल बनाएं। सुख, शांति और प्रेम से जीवन जीना ही हमारा स्वभाव है।

Home / Prime / Opinion / आत्म-दर्शन : जीवन कैसे हो सार्थक

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.