यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि केवल मनुष्य मात्र होने से ही उसे धर्म ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता, क्योंकि आज भी ऐसे लोग हैं जो न तो धर्म से परिचित हैं और न ही धर्म का अनुशीलन करते हैं। जो मनुष्य धर्म का अनुशीलन करते हैं, यथार्थ में वे ही मनुष्य हैं। और, जो आहार, निद्रा, भय व मैथुन आदि में रत हैं वे मनुष्य शरीर में पशु हैं। अत: मनुष्य जीवन प्राप्त होने पर धर्मज्ञान प्राप्त करना प्रधान कत्र्तव्य है। प्रभु ने असीम कृपा कर मानव को वह शक्ति दी है, जिससे उन्नति की चरम सीमा पर पहुंचा जा सकता है। इसी साधना-क्षमता के कारण मनुष्य सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना है।