दूसरी परम्परा हमारे अधिक संपर्क में आती है, तो हम थोड़ा असहज अनुभव करते हैं। यह एक नकारात्मक भाव है। दूसरा भाव यह है कि अधिक संचार के कारण, परम्पराओं के बीच सच्चा सामंजस्य विकसित करने के अवसरों में वृद्धि हुई है। अब हमें सच्चा सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास करने चाहिए। विश्व के प्रमुख धर्मों को देखें। ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम, विभिन्न हिंदू और बौद्ध परम्पराएं, जैन धर्म, कन्फ्यूशीवाद इत्यादि-में से प्रत्येक का अपना वैशिष्ट्य है। अत: निकट संपर्क द्वारा हम एक दूसरे से नई चीजें सीख सकते हैं। हम अपनी परम्पराओं को समृद्ध कर सकते हैं।