आत्म-दर्शन : सामंजस्य की जरूरत
विश्व समुदाय एक इकाई की तरह बन गया है- एक बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक एकल घटक।

दलाई लामा बौद्ध धर्मगुरु
आज की वास्तविकता अतीत की वास्तविकता से थोड़ी भिन्न है। अतीत में, विभिन्न परम्पराओं के लोग लगभग अलग रहते थे। बौद्ध एशिया में बने रहे, मध्य पूर्व में और एशिया के कुछ भागों में मुसलमान और पश्चिम में अधिकांश रूप से ईसाई थे। तो आपसी संपर्क बहुत कम था। अब समय अलग है। प्रवास की कई नई लहरें हैं। आर्थिक वैश्वीकरण है और साथ ही बढ़ता पर्यटन उद्योग है। इन विभिन्न कारकों के कारण हमारा विश्व समुदाय एक इकाई की तरह बन गया है- एक बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक एकल घटक।
दूसरी परम्परा हमारे अधिक संपर्क में आती है, तो हम थोड़ा असहज अनुभव करते हैं। यह एक नकारात्मक भाव है। दूसरा भाव यह है कि अधिक संचार के कारण, परम्पराओं के बीच सच्चा सामंजस्य विकसित करने के अवसरों में वृद्धि हुई है। अब हमें सच्चा सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास करने चाहिए। विश्व के प्रमुख धर्मों को देखें। ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम, विभिन्न हिंदू और बौद्ध परम्पराएं, जैन धर्म, कन्फ्यूशीवाद इत्यादि-में से प्रत्येक का अपना वैशिष्ट्य है। अत: निकट संपर्क द्वारा हम एक दूसरे से नई चीजें सीख सकते हैं। हम अपनी परम्पराओं को समृद्ध कर सकते हैं।
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