नियम और संयम के बिना जीवन में कोई साधना फलीभूत नहीं होती। संयम ज्ञान ज्योति है। हृदय पर संयम से चित्त का ज्ञान होता है। संयम एक साधना है एवं साधना का मूल ध्येय है- शरीर और मस्तिष्क को बिना थकाए स्वस्थ चेतना की ओर ले जाना। जो मनुष्य नियम व संयम से चलता है, वह सदैव प्रसन्न रहता है। मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकार किया है। सांसारिक व्यवहारों एवं सम्बन्धों को परिष्कृत तथा सुसंस्कृत रूप में स्थित रखने के लिए संयम की अत्यन्त आवश्यकता है।