रात हमेशा नहीं रहती, उतना ही बड़ा सत्य यह है कि दिन भी निरन्तर नहीं रहता। कृष्ण और शुक्ल पक्ष नियति चक्र का हिस्सा हंै। जैसे बाढ़ आती है, ज्वालामुखी फूटता है, तो संहार होता है, पर उसी के अनन्तर निर्माण या सृजन के साधन भी उपजते हैं। इसलिए घर में रहकर समय का सही चिन्तन में निवेश किया जाना चाहिए। हम सोचें कि वस्तुत: प्रगति आखिर है क्या? हमने खूब शिक्षा पाई, पर सुशिक्षित न हो सके। इसी का भयावह परिणाम विश्व के सम्मुख है। शिक्षा वह जो संस्कारित करे, जो स्वाध्याय, सत्संग और सद्गुरु सन्निधि से प्राप्त हो सकती है।
आशावाद अनन्त ऊर्जा का स्रोत है। इसका दूसरा नाम सकारात्मकता है। सकारात्मक व्यक्ति हर विरोधी परिस्थिति में भी अनुकूलता ढूंढ लेता है। वह कभी निराश नहीं होता। पुरातनकाल में आकस्मिक विपत्ति के समय लोग गड़ा हुआ धन खोदकर निकालते थे। हमें इस कोरोना काल में आध्यात्मिक सौंदर्य एवं मानवीय मूल्यों को बचाने में समर्थ हमारे प्राचीन ग्रंथों को बाहर निकालकर जीवन में आस्था को बनाए रखना है।