धर्म हमें ढंग से जीवन जीने और इस संसार सागर से पार उतरने की कला सिखाता है। धर्म को आचरण में उतारकार हम अपने जीवन को इह लोक में व्यवस्थित, मर्यादित, सात्विक, अहिंसक एवं शांतिमय तरीके से जी सकते हैं और अपने जीवन के यथार्थ रस का आनंद ले सकते हैं। लेकिन धर्म का ढोंग हमें नुकसान पहुंचाता है। हमें ढोंग को स्थान नहीं देना चाहिए, अपितु ढंग से जीवन व्यतीत करना चाहिए। सच्चाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है और उस ढोंगी व्यक्ति को दरकिनार कर देते हैं।
ऐसे में बस ढोंगी को सुधारें, उसे उसकी गलती का अहसास कराएं और ढिंढोरा ना पीटें, क्योंकि ढिंढोरा पीटने का एक भयानक दुष्परिणाम है कि दुनिया सभी लोगों को एक ही चश्मे से देखना शुरू कर देती है। सबको एक ही तराजू में तोलना शुरू कर देती है, जिसके परिणाम अच्छे नहीं होते। ऐसे में उस व्यक्ति का सुधार करें, उपगूहन की पृष्ठभूमि में स्थितिकरण करें, ताकि उसकी बदनामी का खमियाजा समाज व धर्म को नहीं भुगतना पड़े।