जल ही जीवन है। शहर ही नहीं गांव में भी शराब तो मिल जाती है, लेकिन पानी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। प्रमुख नदियां भी सूखने लगी हैं या दूषित हो गई हैं। गंगा जैसी पवित्र नदी को भी इतना दूषित कर दिया गया है कि इसका पानी कई स्थानों पर तो नहाने लायक भी नहीं रहा। हिमालय भी घायल है। भगवान महावीर ने जल संरक्षण का महत्त्व बताया था। उन्होंने कहा था कि पानी व्यर्थ में बर्बाद मत करो।
इसे उन्होंने अनर्थ दंड नामक पाप बताया था। व्यर्थ में पानी बहाना तो पाप है ही, पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाना भी इसी श्रेणी में आता है। महावीर ने कहा था कि एक बूंद अनछने पानी में असंख्य जीव होते हैं। बाद में विज्ञान ने भी इसे माना। इस तरह पानी का दुरूपयोग करने से असंख्य जीवों की हिंसा का दोष लगता है। महावीर की बात की गंभीरता को समझ लिया होता, तो जल संकट के हालात पैदा नहीं होते। पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं होनी चाहिए। इसी में सबकी भलाई है, क्योंकि ‘जल है तो कल’ है।