scriptआत्म-दर्शन: ईश्वर को बनाएं मित्र | Self realization: Make God your friend | Patrika News

आत्म-दर्शन: ईश्वर को बनाएं मित्र

locationनई दिल्लीPublished: Jan 19, 2021 02:07:43 pm

Submitted by:

Mahendra Yadav

 

भगवान की कृपा और नित्य-विद्यमानता का अनुभव ही आध्यात्मिक मार्ग की सफलता है।
जिसका उदय होता है, उसका अस्त होना भी तय है, ताकि फिर उदय हो सके। यही सृष्टि का चक्र है।

swami_avdheshanand_giri_ji.png
स्वामी अवधेशानंद गिरी
(आचार्य महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा)

समष्टि के प्रत्येक प्राणी के लिए परमात्मा का हृदय अपनत्व-औदार्य एवं करुणा से परिपूर्ण है। अनन्याश्रित भाव से भगवदीय विधान के प्रति समर्पित रहें। भगवान की कृपा और नित्य-विद्यमानता का अनुभव ही आध्यात्मिक मार्ग की सफलता है। ईश्वरीय विधान सर्वथा मंगलमय, निर्दोष एवं कल्याणप्रद है। अत: प्रत्येक परिस्थिति सभी प्राणी, जीव-जगत के लिए सर्वदा हितकर है। भौतिक दृष्टि जड़ तत्व को प्रधानता देती है और उसे ही चेतन तत्व का नियामक या निर्धारक मानती है। आत्मवाद में चेतन सत्ता को सर्वोपरि माना जाता है। जिसका जन्म है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जिसका उदय होता है, उसका अस्त होना भी तय है, ताकि फिर उदय हो सके। यही सृष्टि का चक्र है। जो विश्व-कल्याण की कामना में ही अपना कल्याण मानते हैं और तदनुसार आचरण करते हैं। ईश्वर के अनुदान उन्हें उसी तरह प्राप्त होते हैं, जैसे कोई पिता अपने सदाचारी, गुणी, आज्ञा पालक और सेवा भावी पुत्र को ही अपनी सुख-सुविधाओं का अधिकांश भाग सौंपता है।
संसार की इस लम्बी जीवन-यात्रा को एकाकी पूरा करने के लिए चल पडऩा निरापद नहीं है। इसमें आपत्तियां आएंगी, संकटों का सामना करना होगा। निराशा और निरुत्साह से टक्कर लेनी होगी। और, इन बाधाओं और दु:खदायी परिस्थितियों से लडऩे के लिए एक विश्वस्त साथी का होना अति आवश्यक है। और, वह साथी ईश्वर से अच्छा और कोई हो नहीं सकता। उसे कहीं से लाने-बुलाने की आवश्यकता नहीं होती है। वह तो हर समय, हर स्थान पर विद्यमान है। वह हमारे भीतर ही बैठा हुआ है। किन्तु, हम अपने अहंकार के कारण उसे जान नहीं पाते। ईश्वर हमारा महान उपकारी पिता है। वह हमारा स्वामी और सखा भी है। हमें उसके प्रति सदा आस्थावान रहना चाहिए और आभारपूर्वक उसके उपकारों को याद करते हुए उसके प्रति विनम्र एवं श्रद्धालु बने रहना चाहिए। इसमें हमारा न केवल सुख निहित है, बल्कि लोक-परलोक दोनों का भी कल्याण है। वह करुणा सागर है, दया का आगार है। जिसने ईश्वर से मित्रता कर ली है, उसे अपना साथी बना लिया है, उसके लिए यह संसार बैकुण्ठ की तरह आनन्द का सागर बन जाता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो