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आत्म-दर्शन – ऐसा देश है मेरा

हजारों वर्षों से भारत उपमहाद्वीप में, असंख्य राजनीतिक सत्ताएं होने के बावजूद, हम हमेशा इस धरती पर एक राष्ट्र के तौर पर ही जाने गए।

नई दिल्लीJan 26, 2021 / 11:25 am

विकास गुप्ता

सद्गुरु जग्गी वासुदेव, ईशा फाउंडेशन के संस्थापक

सद्गुरु जग्गी वासुदेव, ईशा फाउंडेशन के संस्थापक

हजारों वर्षों से भारत उपमहाद्वीप में, असंख्य राजनीतिक सत्ताएं होने के बावजूद, हम हमेशा इस धरती पर एक राष्ट्र के तौर पर ही जाने गए। अनूठे आध्यात्मिक व सांस्कृतिक स्वभाव की वजह से ही ऐसा संभव हो सका। यह संस्कृति संसार की सबसे रंगीन और जटिल संस्कृति है। लोगों की छवि, उनकी भाषाएं, उनका भोजन, उनका पहनावा, उनका गीत व नृत्य, इस देश में हर पचास या सौ किलोमीटर के बाद बदल जाता है। यहां तक कि आज भी, हमने उस मूल सांस्कृतिक व आध्यात्मिक सूत्र को खोया नहीं है, जो इस देश की विविध जनसंख्या को हजारों सालों से एक सूत्र में पिरोता आया है।

करीबन ग्यारह सौ साल से भी अधिक समय तक, किसी न किसी का आक्रमण होने पर भी, अपार जनसंख्या ने अपनी मूल जड़ों को जीवित रखा। उन्होंने केवल इन जड़ों को संजोया ही नहीं, बल्कि पूरी तरह से जीवंत रखा। इन लोगों के बीच कुछ निश्चित प्रकार का लोकाचार, चेतना और जागरूकता बनी रही, जिसे कहीं और नहीं पाया जा सकता। आप इसे व्यक्तिगत रूप से तो पा सकते हैं, परंतु अपार जनसमूह के भीतर, सामूहिक तौर पर ऐसी चेतना देखने को नहीं मिलती। दुनिया के किसी भी हिस्से में जीवन के अनेक पहलुओं के लिए, जनसमूह में अवचेतन जागरूकता का ऐसा भाव नहीं मिलता।

इस देश का हर पहलू और इसका निर्माण, अपनी पहचान और प्रक्रिया में अनूठा रहा है। यहां तक कि जब हम अंग्रेजों को बाहर निकालने में सफल रहे, तो यह भी एक अनूठे तरीके से हुआ, जिसके लिए महात्मा गांधी को धन्यवाद देना होगा। साम्राज्यवादी ताकत के मोर्चाबंद प्रशासन को किसी भी सशस्त्र विद्रोह के बिना देश से बाहर निकाला गया। यह एक ऐसा देश है, जिसकी विशाल जनसंख्या वह सब कुछ छोड़ सकती है, जिसकी आमतौर पर एक इंसान को चाहना होती है। यहां लोग परम लक्ष्य को पाने के लिए अपने सारे जीवन के सुख, आनंद और अधिकारों को छोड़ सकते हैं। इसी आध्यात्मिक स्वभाव के चलते, हमारी आजादी की लड़ाई भी अनूठी रही, बाद में अनेक देशों ने हमारा अनुकरण करने का प्रयत्न किया।

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