अगर आप अपनी प्रार्थनाओं पर गौर करें, तो पाएंगे कि संसार की 95 प्रतिशत प्रार्थनाओं का संबंध, सुरक्षा और खुशहाली मांगने से ही है। यह बस अपना वजूद बरकरार रखने के लिए है। अधिकतर लोगों में प्रार्थना की बुनियाद डर और असुरक्षा ही है। जब तक आप अपनी पहचान एक भौतिक शरीर से बनाए हुए हैं और आपके जीवन का अनुभव अपनी शारीरिक तथा मानसिक क्षमताओं तक सीमित है, डर और असुरक्षा लाजिमी है। एक बार जब आप खुद को शारीरिक और मानसिक सीमाओं से परे अनुभव करना सीख लेते हैं, केवल तभी डर और असुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं रह जाती है। योग इसमें सहायक होता है।