यह ध्यान रहे कि ब्रह्मचर्य का अर्थ वस्तुत: सही-सही मायने में है – ‘चेतन का भोग।’ ब्रह्मचर्य का अर्थ भोग से निवृत्ति नहीं, भोग के साथ एकीकरण और रोग निवृत्ति है। जिसको आप लोगों ने भोग समझ रखा है, वह है रोग का मूल और ब्रह्मचर्य है जीवन का एकमात्र स्रोत। विषय वासना मृत्यु का कारण है, मृत्यु दुख है, दुख का कूप है और ब्रह्मचर्य जीवन है, आनन्द है, सुख का कूप है। आप सुख चाहते हैं, दुख से निवृत्ति चाहते हैं तो चाहे आज अपनाएं, चाहे कल अपनाएं, कभी भी अपनाएं, किन्तु आपको अपनाना यही होगा। रोग की निवृत्ति के लिए औषधपान परमावश्यक होता है। बिना औषधपान के रोग ठीक नहीं हो सकेगा।
आज तक जितने भी अनन्त सुख के भोक्ता बने हैं, उन सबने इसका समादर किया है और जीवन में अपनाया है, अपने जीवन में इसको स्थान दिया है, मुख्य सिंहासन पर विराजमान कराया है इसे, भोग-सामग्री को नहीं। ब्रह्मचर्य पूज्य बना, किन्तु भोग सामग्री आज तक पूज्य नहीं बनी। ब्रह्मचर्य का विरोधी धर्म है काम, इस काम के ऊपर विजय प्राप्त करनी है। यह काम और कोई दूसरी चीज नहीं है, यह वही उपयोग है, जो कि बहिवृत्ति को अपनाता जा रहा है, उसी का नाम है काम। वही उपयोग, जो कि भौतिक सामग्री में अटका हुआ है।