जिस तरह से पाकिस्तान अपने जर्रे-जर्रे को समेट रहा है, उससे लगता है कि फ्रांस के बरबन राजाओं की तरह ही पाकिस्तान के शासक भी ‘कुछ नहीं सीखते और न ही कुछ भूलते हैं।’
शाहबाज कलंदर दरगाह पर किया गया हमला पांच दिनों में पाकिस्तान में होने वाले दस हमलों में से एक था। तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान (टीटीपी) के ही एक धड़े जमात-उल-अहरार (जेयूए) ने शाहबाज कलंदर दरगाह पर हमले की जिम्मदारी ली है।
जेयूए खुद को इस्लामिक स्टेट का वफादार बताता है। सुरक्षा जानकारों के अनुसार पाकिस्तानी अब पाक तालिबान का हिस्सा लश्कर-ए-झांगवी और जमात-उल-अहरार जैसे संगठनों के खिलाफ तो कार्रवाई कर सकता है, पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के खिलाफ किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
जिन पर कार्रवाई के लिए भारत, पाकिस्तान पर दबाव बनाता रहा है। पाकिस्तान का आरोप है कि जेयूए अफगानिस्तान से काम करता है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से जेयूए के आतंकियों का खात्मा करने की मांग की है।
हमले के बाद पाकिस्तान ने अपनी अफगानिस्तान से लगती सीमा बंद कर दी है। इससे अफगानिस्तान के लोगों की सीमा पार आवाजाही और व्यापारिक गतिविधियों पर लगाम लग गई है। इससे अफगानिस्तान दबाव में है।
पाक सेना ने अफगान दूतावास के अधिकारियों को 76 लोगों की एक सूची सौंपी है और उन्हें इस्लामाबाद को सौंपने की मांग की। आम तौर पर सेना किसी विदेशी दूतावास के अधिकारियों को सीधे समन नहीं करती लेकिन पाकिस्तानी सेना कोई आम सेना तो है नहीं।
पाकिस्तान की गतिविधियों से साफ जाहिर है कि वह देश में आतंक की समस्या को नजरंदाज कर दूसरे देशों पर ही दोष थोपता रहता है। दरअसल, वर्ष 1970 में पाकिस्तान ने सऊदी अरब को अपना बड़ा भाई फरमाबरदार मान लिया। इससे अरब देशों की कट्टर इस्लामिक विचारधारा पैर पसारने लगी। जुल्फिकार अली भुट्टो ने वर्ष 1974 में अहमदियों को ‘गैर-मुस्लिम’ घोषित कर दिया।
तत्कालीन राष्ट्रपति जिया-उल-हक के समय कट्टरपंथी और जिहादी ताकतें और मजबूत हो गईं थीं। उन्होंने पाकिस्तान को कट्टर इस्लामी देश बनने की ओर धकेल दिया। इससे यहां मुसलमान शिया और सुन्नी के धड़ों में बंट गए।
पाक सरकारें कहती आई हैं कि पाकिस्तान को वे एक सभ्य इस्लामी देश बनाना चाहती हैं, लेकिन पाकिस्तान इस पर दिशा में अमल नहीं कर रहा। आखिरकार, कश्मीर और अफगानिस्तान में आतंक फैलाने के लिए अपनी ही धरती पर आतंक पनपाने के पाकिस्तान के फैसले ने आतंक को पाक की नसों में बसा दिया है। इसके साथ ही पाक का पतन शुरू हो गया, जो आज तक जारी है।