scriptशर्मनाक! | Shameful! | Patrika News

शर्मनाक!

Published: Jul 24, 2017 10:59:00 pm

लोकसभा में सोमवार को हुए हंगामे के बाद संसद के मानूसन सत्र के धुलने के
आसार नजर आने लगे हैं। हंगामे के बीच कांग्रेस सांसदों की ओर से लोकसभा
अध्यक्ष की तरफ जिस तरह कागज फाड़कर फें  वह शर्मनाक है। घटना

opinion news

opinion news

लोकसभा में सोमवार को हुए हंगामे के बाद संसद के मानूसन सत्र के धुलने के आसार नजर आने लगे हैं। हंगामे के बीच कांग्रेस सांसदों की ओर से लोकसभा अध्यक्ष की तरफ जिस तरह कागज फाड़कर फें वह शर्मनाक है। घटना से नाराज सुमित्रा महाजन ने अनुचित व्यवहार के लिए छह कांग्रेसी सांसदों को पांच दिन के लिए सदन से बाहर कर दिया। खास बात ये कि कांग्रेसी सांसदों के इस आचरण के दौरान पार्टी अध्यक्ष सोनिया गंाधी सदन में मौजूद थीं।

संसद के पिछले सत्रों पर नजर डाली जाए तो जाहिर है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष में समन्वय कहीं नजर ही नहीं आ रहा। इस टकराव ने संसदीय परम्पराओं की तमाम मर्यादाओं को ध्वस्त कर दिया है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ ने संसद की गरिमा को तार-तार कर दिया है। ऐसा नहीं कि हंगामा पहले नहीं होता था। होता था लेकिन एक सीमा के भीतर। आसन का सम्मान किया जाता था।

गतिरोध बढऩे पर दोनों पक्षों के संजीदा सदस्य माहौल सामान्य बनाने के लिए भी आ जाते थे। अब हालात विकट होते जा रहे हैं। संसद में ऐसे नेताओं का अकाल सा है जिनकी बात दोनों पक्ष सुनते हों। संसद सीधे-सीधे दो पालों में तब्दील होती जा रही है। हर पक्ष अपनी बात को रखना चाहता है लेकिन दूसरे पक्ष की बात सुनने को तैयार नहीं। संसद चलाने के नियम हैं जो सबने मिलकर बनाए हैं।

निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी संसद में ऐसी घटनाओं पर चिंता जता चुके हैं। सभी दल भी आवाज उठाते रहते हैं। फिर क्यों नहीं संसद वैसी चल रही जैसी चलनी चाहिए। नुकसान किसी और का नहीं, देश का हो रहा है। अहम मुद्दों पर बहस नहीं हो पाती। किसी भी समस्या के समाधान का रास्ता सार्थक बहस से ही निकल सकता है।

किसानों की समस्याओं पर सांसद हंगामा तो करते हैं। लेकिन बहस से कतराते हैं। शायद इसलिए क्योंकि आज के दौर में चर्चा भी हंगामा करने वाले सांसदों की ही होती है। ऐसे हंगामों से तो यही लगता है कि संसद सत्रों के दिखावे की जरूरत क्या है? विधेयकों को जब बिना बहस ही पारित कराना है तो इसका विकल्प भी तलाशा जा सकता है।

संसद की मर्यादा बनाए रखने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की अधिक तो विपक्ष की कुछ कम। जो आज पक्ष-विपक्ष कल विपरीत भूमिका में आ सकता है। इस भाव को समझा जाए तो संसद अपने दायित्व का निर्वहन कर सकती है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो