मन का रीतापन करें दूर
Published: Oct 18, 2016 06:27:00 pm
कभी दोपहर वहां से निकलना होता तो बच्चे व पति-पत्नी वहीं फुटपाथ पर मस्त नींद निकाल रहे होते थे
मैं जब भी ऑफिस जाती थी, आते-जाते मेरी नजर एक झोंपड़पटटी की तरफ पड़ ही जाती थी क्योंकि वो मेरे रास्ते मे बनी थी। अक्सर देखने को मिलता था कि वहां पति-पत्नी साथ बैठकर खाना खा रहे हैं। वैसे तो फुटपाथ या झोंपड़ी में रहने वाले लोग खुद तो खाना बहुत कम ही बनाते हैं, अधिकांश ये लोग मांगकर ही खाते हैं। पर वह जोड़ा जब कभी खाना बनाता था तो दोनों साथ मिलकर खाना बनाते थे।
कभी दोपहर वहां से निकलना होता तो बच्चे व पति-पत्नी वहीं फुटपाथ पर मस्त नींद निकाल रहे होते थे। कभी सब मिलकर कुछ खेल रहे होते थे शायद चंगा पो। एक दिन वही महिला, जिसे मैं अक्सर देखा करती थी मेरे ही घर मांगने आ गई। मैंने जो खाना बना हुआ था उसे उस वक्त दे दिया। खुश होकर वो दुआ देने लगी कि तुम्हारी खुशियां बनी रहें। जैसी सुख सुविधा अन्न-धन का भंडार है, वो हमेशा बना रहे। वो तो दुआ देकर चली गई पर मुझे सोचने पर मजबूर कर गई कि खुशियां मेरे पास हैं या उसके पास? मेरे पास पति को बैठने का टाइम नहीं है।
बच्चे छोटे थे तो पहले स्कूल फिर कॉलेज, कभी टाइम नहीं रहा उनके पास। अब सब अपनी-अपनी नौकरी में बाहर हैं। पति देर रात आते है उसमें भी फोन, फिर सो जाना सुबह जल्दी चले जाना। कभी किसी समारोह में भी जाना हो तो उसमें थोड़ा जल्दी आना पर उसमें भी मुझे पहले से तैयार मिलने की ‘वॉर्निंग’ और जल्दबाजी में घर से निकलना, फिर दूसरों को टाइम देना पर मेरे लिए हमेशा बिजी रहना। हां पैसे की कोई कमी नहीं पर मुझे नहीं लगता कि खुशियां मेरे पास हैं, मुझे लगता है खुशियां, प्यार, आत्मीयता से भरी वह महिला थी, मैं तो एकदम रीती उसे ताकती रही।
-यशी