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अग्नि और सोम ही पशु के पोषक

सृष्टि में जो स्थान मानव जाति का है, वही पशुवर्ग का भी है। हमारी तरह पशु भी चेतन (ससंज्ञ) हैं, जीव हैं। सभी के केन्द्र में अव्यय पुरुष-मन-प्राण-वाक् रूप में स्थित रहता है।

जयपुरAug 12, 2022 / 09:45 pm

Patrika Desk

सृष्टि में जो स्थान मानव जाति का है, वही पशुवर्ग का भी है। हमारी तरह पशु भी चेतन (ससंज्ञ) हैं, जीव हैं। सभी के केन्द्र में अव्यय पुरुष-मन-प्राण-वाक् रूप में स्थित रहता है।
प्राण दो प्रकार का होता है-मर्त्य और अमृत। जो अमृतप्राण है उसे ही देवता कहते हैं और मत्र्यप्राण को पशु। मत्र्यप्राण अमृतप्राण की उपभोग्य वस्तु है-उपकरण सामग्री है। पशु देवता के आधार पर रहते हैं। अर्थसृष्टि में जैसे देव-पशु विभाग हैं, वैसे ही शब्द-सृष्टि में समझना चाहिए। शब्द-सृष्टि में देवता स्वर है एवं पशु व्यञ्जन। व्यञ्जन पर स्वर सदा आक्रान्त रहता है। जो कुछ नियम अर्थ-सृष्टि का है, वैसा ही शब्द-सृष्टि का। अर्थ-सृष्टि में ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, अग्नि व सोम इन पांच स्वरों से सृष्टि होती है, तो शब्द-सृष्टि में भी अ, इ, उ, ऋ, लृ इन पांच अक्षरों से ही सारे वर्ण उत्पन्न होते हैं। अर्थ-सृष्टि में ब्रह्मतत्त्व से अन्य सभी तत्त्व उत्पन्न होते हैं तो शब्द-सृष्टि में भी अकार से ही सारे वाङ्मय की उत्पत्ति होती है।

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